Poem on Teacher in Hindi – एक शिक्षक का हमारे जीवन काफी महत्व होता है. “शिक्षक दिवस” हमारे शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. शिक्षक दिवस वह दिन है जब हम हमारे उन मार्गदर्शकों और गुरुओं का आभार व्यक्त करते हैं, जो हमें ज्ञान और सही समझ का दान करते हैं। शिक्षा जीवन का अनमोल उपहार है जिसे न कोई छीन सकता और ना कोई चुरा सकता किसी एक व्यक्ति की शिक्षा से हजारो लाखो लोगो में ज्ञान का प्रकाश डाल सकती है. यहाँ पर हमनें संवादात्मक तरीके से यह शिक्षक दिवस मनाने के लिए कविताओं, श्लोक और दोहे का संग्रह प्रकाशित किया है, जिसे हम अपने गुरुओं के प्रति हमारे आभार और समर्पण की भावना सुंदरता से व्यक्त करते है। शिक्षक दिवस कविताओं, श्लोक और दोहे (Teachers Day Poem in Hindi) के जरिए हम अपने शिक्षकों के साथ हमारे जीवन में जो अहम भूमिका निभाते हैं, शिक्षक प्रति आभार और समर्पण दिखाते हैं।
शिक्षक दिवस भाषण; इन बातों का रखें ध्यान
शिक्षक दिवस कविताएँ – Teachers Day Poems in Hindi
निचे हमने हिंदी में Teachers Day पोएम जारी की है जिन्हें पड़कर और यादकर आप अपने स्कूल या कॉलेज के समारोह में एकत्रित व्यक्तियों को सुना सकते हो.
गुरु महिमा – कविता
गुरु की महिमा निशि-दिन गाएँ,
हर दम उनको शीश नवाएँ।
जीवन में उजियारा भर लें,
अंधकार को मार भगाएँ।
सत्य मार्ग पर चलना बच्चो,
गुरुदेव हमको सिखलाएँ।
पर्यावरण बिगड़ न पाए,
धरती पर हम वृक्ष लगाएँ।
पानी अमृत है धरती का,
बूँद-बूँद हम रोज बचाएँ।
सिर्फ जिएँ न अपनी खातिर,
काम दूसरों के भी आएँ।
मात, पिता, गुरु, राष्ट्र की सेवा,
यह संकल्प सदा दोहराएँ।
बातें मानें गुरुदेव की,
अपना जीवन सफल बनाएँ।
-घनश्याम मैथिल
ज्ञान की बातें – कविता
ज्ञान की बातें जो सिखलाता,
गुरु हमारा वह कहलाता।
ज्ञान दीप की ज्योति देकर,
अंधकार को दूर भगाता।
संस्कार सिखलाए गुरु जी,
बड़ो का मान बतलाए गुरुजी।
अनुशासन भी वो सिखलाते,
त्याग समर्पण वह बतलाते।
सबको ज्ञान बाँटते जाते,
अपना ज्ञान बढ़ाते जाते।
उनकी ताकत होती कलम,
कलम नहीं किसी से कम।
विद्यालय है घर जैसा,
हम सब उनके बच्चे जैसे।
एक साथ रहना बतलाए,
सबसे स्नेह करना सिखलाए।
उनके चरण कमल को मैं,
सत-सत नमन करती जाऊँ।
ज्ञान दीप की ज्योति लेकर,
उनका मैं गौरव बन जाऊँ।
–धारणी सोनवानी
जग में गुरु महान है – कविता
गुरु शिक्षा की खान है,
जग में गुरु महान है।
सीख देने वाले भू-तल में,
देवतुल्य इंसान है।।
ज्ञान का अलख जगाते,
अच्छे संस्कार दे जाते हैं।
गुरु का ज्ञान पाकर,
हम खुद को धन्य पाते हैं।।
कुम्हार मिट्टी थाप लगाकर,
देता उसे नई पहचान है।
गुरु शून्यरूपी नादान को,
बनाते उच्च कोटि इंसान है।।
गुरु की महिमा तो,
गाता सारा जहान है।
मिलता ऊँचा शिखर,
गुरु से राष्ट्र निर्माण है।।
गुरु ही साक्षात पारब्रह्म,
ब्रह्मा, विष्णु, महेश।
इनके पथ प्रदर्शन से,
जीवन में न होता क्लेश।।
महामानव गुरु को,
लगाऊँ तिलक चंदन।
नव सृजनकर्ता गुरु का,
करूँ बारम्बार वंदन।।
करूँ बारम्बार वंदन।।
–महेन्द्र साहू
गुरु की वाणी – कविता
गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे
जो अच्छा है जो बुरा है
उसकी हम पहचान करें
मार्ग मिले चाहे जैसा भी
उसका हम सम्मान करें
दीप जले या अंगारे हों
पाठ तुम्हारा याद रहे
अच्छाई और बुराई का
जब भी हम चुनाव करें
गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे
-सुजाता मिश्रा
शिक्षा की ज्योति – अध्यापिका – कविता
जो हैं अटके, भूले-भटके,
उनको राह दिखाएँगे।
ज्ञान-विज्ञान संस्कार सिखा,
शिक्षा जोत जलाएँगे।
शिक्षक हैं हम,
शिक्षा की ज्योति जलाएँगे।
देश-धर्म और जात-पात से,
हम ऊपर उठ जाएँगे।
समता का नवगीत रचेंगे,
ज्ञान का अलख जगाएँगे।
शिक्षक हैं हम,
शिक्षा की ज्योति जलाएँगे।
छूट गए जो अंधियारे में,
अब अलग नहीं रह पाएँगे।
शिक्षा के अमर उजाले में,
उनको भी हम लाएँगे।
शिक्षक हैं हम,
शिक्षा की ज्योति जलाएँगे।
खेल-खेल में पढ़ना होगा,
ढंग नए अपनाएँगे।
महक उठेगा सबका जीवन,
सब बच्चे मुस्काएँगे।
शिक्षक हैं हम,
शिक्षा की ज्योति जलाएँगे।
–लोकेश्वरी कश्यप
शिक्षक दिवस श्लोक – Teachers Day Verse in Hindi
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥
विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् । शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥
सर्वाभिलाषिणः सर्वभोजिनः सपरिग्रहाः । अब्रह्मचारिणो मिथ्योपदेशा गुरवो न तु ॥
दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली शीलेन भार्या कमलेन तोयम् । गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः शमेन विद्या नगरी जनेन ॥
शिक्षक दिवस दोहे – कबीर के दोहे – Teachers Day Couplets
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय | बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय ||
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट। अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान। तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥
गुरू बिन ज्ञान न उपजई, गुरू बिन मलई न मोश | गुरू बिन लाखाई ना सत्य को, गुरू बिन मिटे ना दोष||
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त ||