“किसी समाज की वास्तविकता जानने के लिये वहां की महिलाओं की स्थिति देख सकते हैं..”
— जवाहरलाल नेहरू
1- परिचय — देश की बेटियों को सशक्त व स्वावलंबी बनाने और उनके गिरते लिंगानुपात में सुधार लाने हेतु भारत सरकार द्वारा 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत से ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरुआत एक अभियान की तरह ही की गई। इसका मुख्य उद्देश्य है– लड़कियों में व्यापक शिक्षा-प्रसार के माध्यम से उन्हें सामाजिक शक्ति व वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान कर उनके जीवन-स्तर को उन्नत बनाना। और इसके साथ ही समाज में लड़कों के सापेक्ष उनकी गिरती संख्या, अर्थात् लिंगानुपात में सुधार लाना। ताकि समाज के विकास-क्रम में स्त्री जाति भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सके। ध्यातव्य है कि स्त्री ही किसी परिवार का आधार होती है, और परिवार समाज का। इसलिये साफ है कि एक स्वस्थ और उन्नतिशील समाज के निर्माण हेतु स्त्री वर्ग का सुशिक्षित होना अपरिहार्य है।
2- आवश्यकता — गौरतलब है कि देश की तेजी से बढ़ती जनसंख्या में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों का अनुपात सदैव अधिक ही रहा है। जबकि भारतीय समाज परंपरागत तौर पर लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक महत्व देता रहा है। इसके चलते 2001 की जनगणना के अनुसार में देश में एक हजार लड़कों के सापेक्ष लड़कियों की संख्या 927 थी; जो 2011 में कुछ सुधरते हुये 943 हो गई। पर 2018 के एक आंकड़े के अनुसार यह संख्या गिरकर 899 तक पहुंच चुकी है। उल्लेखनीय है कि यह अनुपात 1991 में हजार लड़कों पर 945 लड़कियों का था। काबिलेगौर है कि मणिपुर, राजस्थान और बिहार जैसे सूबों में इसकी सबसे खराब स्थिति है। इसका मुख्य कारण स्पष्ट रूप से जन्मपूर्व लिंग की जांच व हमारी परंपरागत सामाजिक मान्यताओं की जड़ता के अलावा स्त्रियों में व्याप्त अज्ञान, अशिक्षा और उसके चलते होने वाली लापरवाही ही है। जिसकी वज़ह से न केवल उनकी अपनी उत्पादन क्षमता कमतर रह जाता है, वरन् राष्ट्रीय-आय में भी उनका योगदान क्षमता से बहुत कम ही रह जाता है। आंकड़े बताते हैं कि आज भी भारत की लगभग चौदह करोड़ महिलायें पढ़-लिख नहीं सकतीं। देश में पुरुषों की साक्षरता दर 82 प्रतिशत है, जबकि महिलाओं के लिये यह दर 65 फ़ीसदी के आसपास ही है।
ज़ाहिर है कि महिलाओं का जीवन उन्नत बनाने हेतु सामाजिक स्तर पर बहुत प्रयासों की दरकार है। इसे देखते हुये ही भारत सरकार के स्वास्थ्य, बाल विकास एवं महिला कल्याण, परिवार कल्याण और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संयुक्त पहल पर जनवरी, 2015 में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान शुरू किया गया। ताकि समाज से पक्षपातपूर्ण लिंग चुनाव का चलन समाप्त हो सके। देश की बालिकायें शिक्षित और जागरूक हों। ताकि उनके अस्तित्व के साथ ही उनकी अस्मिता को भी वाज़िब संरक्षण मिल सके।
3- कार्यान्वयन — इस योजना के तहत अतिनिम्न लिंगानुपात वाले क्षेत्रों या जिलों की पहचान करके वहां गहन व एकीकृत तरीके से काम किया जायेगा। इसमें स्थानीय निकाय, पंचायतीराज संस्थाओं के अलावा तमाम सामाजिक संगठनों का भी सहयोग लिया जायेगा। ताकि इसे सामाजिक विमर्श का विषय बनाया जा सके। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का एक जनसंचार अभियान भी इस योजना में शामिल है, जिसके अंतर्गत बेटी के जन्म पर ज़श्न मनाया जाता है, और बिना किसी भेदभाव के उसकी शिक्षादि जीवन-विकास संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित की जाती है। सरकारी पोर्टल के अलावा इस योजना के प्रचार-प्रसार के लिये संबंधित यू-ट्यूब चैनल भी बनाया गया है। प्रसंगत:, यहां यह भी स्मरणीय है कि इस योजना के साथ सरकार द्वारा चलाई जा रही ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ का लाभ भी आसानी से मिल सकता है।
4- निगरानी — ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना की सतत् देखभाल एक निगरानी प्रणाली के अंतर्गत लक्ष्य, प्रक्रिया व परिणाम के संकेतकों के आधार पर राष्ट्रीय, प्रादेशिक, जिला व स्थानीय निकाय सभी स्तर पर की जायेगी। केंद्रीय स्तर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय सचिव की अध्यक्षता में गठित एक राष्ट्रीय कार्यबल हर तिमाही नियमित तौर पर इस योजना की प्रगति देखेगी। इसी तरह राज्य के स्तर पर मुख्य सचिव के नेतृत्व में बनी टास्क-फ़ोर्स, और जिला स्तर पर कलक्टर द्वारा योजना संबंधी कार्यों का समन्वयन किया जायेगा।
5- उपसंहार — स्पष्ट है कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना के रूप में भारत सरकार का यह महत्वाकांक्षी अभियान महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। जिससे तमाम बालिकायें लाभान्वित हुईं हैं, और हो रही हैं। पर ज़ुरूरत है हमें सरकार की इस अभिनव पहल के साथ कदमताल करने की। क्योंकि बिना जन-सहयोग के कोई भी सार्वजनिक कभी नहीं लक्ष्य हासिल किया जा सकता। विश्व-गुरू भारत की गौरव-गाथा में गार्गी, अपाला, घोषा, अदिति आदि विदुषी महिलाओं की ऐतिहासिक थाती हमें भूलनी नहीं चाहिये। जिसकी पुनर्प्रतिष्ठा हमारी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बनती है। हमें समझना होगा कि स्त्री समाज की जननी है, और उसके व्यक्तित्व के विकास के बिना उन्नतिशील समाज की कल्पना भी बेमानी है। कहना न होगा कि इसी तथ्य को ध्यान में रखकर सरकार ने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना की है। सो, हमें अपने व अपने समाज के कल्याण और विकास के लिये महिला सशक्तिकरण के इस अभियान में अपना पूरा सहयोग देना चाहिये। ताकि हम अपने सपनों का भारत एक बार फिर से निर्मित कर सकें।