हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabets) | हिंदी अक्षर वर्णमाला – Hindi Varnamala & Letters

हिंदी वर्णमाला – HINDI VARNAMALA & Letters

हिन्दी भाषा में कुल वर्णों की संख्या 52 हैं। हिंदी भाषा के इन सभी वर्णों के व्यवस्थित समूह को हिंदी वर्णमाला कहते है. हिन्दी व्याकरण (Hindi Varnamala) में पहले स्वर वर्ण एवं बाद में व्यंजन वर्ण आते हैं।

दो अक्षर वाले शब्द

हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabets) – 52 वर्णों की संख्या

हिंदी वर्णमालाहिंदी वर्णमालाहिंदी वर्णमालाहिंदी वर्णमालाहिंदी वर्णमालाहिंदी वर्णमाला
अ (a)आ (aa)इ (i)ई (ee)उ (u)ऊ (oo)
ऋ (ri)ए (e)ऐ (ai)ओ (o)औ (au)अं (an)
अः (ah)क (k)ख (kh)ग (g)घ (gh)ङ (ng)
च (ch)छ (chh)ज (j)झ (jh)ञ (ny)ट (t)
ठ (th)ड (d)ढ (dh)ण (n)त (t)थ (th)
द (d)ध (dh)न (n)प (p)फ (ph)ब (b)
भ (bh)म (m)य (y)र (r)ल (l)व (v)
श (sh)ष (sh)स (s)ह (h)क्ष (ksh)त्र (tr)
ज्ञ (gy)श्र (sr)ड़ (ḍ)ढ़ (ḍh)
hindi varnamala

वर्ण विच्छेद की परिभाषा एवं लिखने का तरीका उदाहरण के साथ

वर्ण क्या हैं? – परिभाषा

हिंदी भाषा की जो सबसे छोटी लिखित इकाई होती है उन्हें वर्ण कहलाती है। या फिर देवनागरी लिपि में भाषा की जो सबसे छोटी इकाई होती है को ही वर्ण कहते हैं। अन्य शब्दों में ‘स्वर एवं व्यंजन के सम्मिलित रूपों को ही वर्ण कहा जाता है।’

हिंदी वर्णमाला में वर्णों या अक्षरों की संख्या

हिन्दी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में कुल 52 अक्षर या वर्ण होते हैं- जिनमें 11 स्वर, 2 आयोगवाह (अं, अः), 33 व्यंजन (क् से ह् तक), 2 उत्क्षिप्त व्यंजन (ड़, ढ़) एवं 4 संयुक्त व्यंजन (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र)। हिंदी वर्णमाला में प्रथम स्वर वर्ण एवं बाद में व्यंजन वर्ण की व्यवस्था है। अलग-अलग प्रकार से हिन्दी वर्णमाला में वर्णों की कुल संख्या निम्न है-

मूल या मुख्य वर्ण
44 (11 स्वर, 33 व्यंजन) – “अं, अः, ड़, ढ़, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर।

उच्चारण के आधार पर कुल वर्ण
45 (10 स्वर, 35 व्यंजन) – “ऋ, अं, अः, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर।

लेखन के आधार पर वर्ण
52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)

मानक वर्ण
52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)

कुल वर्ण
52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)

इस तरह मूल या मुख्य वर्णों की कुल संख्या चवालीस (44), उच्चारण के आधार पर वर्णों की कुल संख्या पैंतालीस(45) एवं लेखन के आधार पर वर्णों की कुल संख्या /मानक वर्णों की संख्या /कुल वर्णों की संख्या वावन(52) है।

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Hindi Varnamala Chart

स्वर वर्ण

स्वर उन्हें जिनके वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से यानी बिना रुकावट के किया जाये और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते है उन्हें स्वर कहते है। हिन्दी वर्णमाला में कुल स्वरों की संख्या 13 हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ अं, अः।

मात्रा / कालमान / उच्चारण के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार

हिन्दी वर्णमाला में मात्रा के आधार पर स्वर के तीन भेद होते हैं – १. ह्रस्व स्वर, २. दीर्घ स्वर, ३. प्लुत स्वर। मात्रा का मतलब ‘उच्चारण करने में लगने वाले समय’ से होता है।

ह्रस्व स्वर (Hrasva Swar)

जिन हिंदी स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं वे ह्रस्व स्वर कहलाते हैं। इनमें हिंदी मात्राओं की संख्या 1 होती है। ह्रस्व स्वर के हिन्दी में चार वर्ण हैं- अ, इ, उ, ऋ। ह्रस्व स्वर को छोटी स्वर , एकमात्रिक स्वर या लघु स्वर भी कहा जाता हैं।

दीर्घ स्वर (Deergh Swar)

जिन हिंदी स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दोगुना समय लगता है वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं। इनमें हिंदी मात्राओं की संख्या 2 होती है। दीर्घ स्वर के हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। दीर्घ स्वर को बड़ा-स्वर एवं द्विमात्रिक स्वर भी कहा जाता हैं।

प्लुत स्वर (Plut Swar)

जिन हिंदी स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी थोडा अधिक समय लगता है वे प्लुत स्वर कहलाते हैं। प्रायः इन स्वरों का प्रयोग दूर से बुलाने, पुकारने या चिंता-मनन करने के लिए किया जाता है। जैसे – आऽऽ, ओ३म्, राऽऽम आदि। इन स्वरों की कोई निश्चित संख्या नहीं होती है। लेकिन कुछ भाषाविद ने इनकी संख्या 8 निर्धारित की हैं।

प्लुत स्वर मूलरूप से संस्कृत भाषा के स्वर हैं। ये हिंदी भाषा के स्वर नहीं हैं। ये हिंदी भाषा में सिर्फ त्रिमात्रिक के रूप में प्रयोग होते हैं। इसलिए इन्हें हिंदी में भी मान्यता देते हैं।
त्रिमात्रिक स्वर मतलब इसमें तीन मात्राएँ होती हैं। इसलिए प्लुत स्वर के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से तीन-गुना तथा दीर्घ-स्वर से अधिक समय लगता है।
उदहारण – जिनमें ३ चिन्ह आता है वे संस्कृत शब्द; तथा जिनमें ऽ का प्रयोग हो वे हिंदी शब्द होते हैं।

व्युत्पत्ति / स्रोत / बुनावट के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार

हिंदी में इनकी कुल संख्या 11 होती है। हिन्दी वर्णमाला में व्युत्पत्ति या फिर स्रोत या बुनावट के आधार पर हिंदी स्वरों को दो अलग-अलग भागों में बांटा जाता है- १. मूल स्वर, २. संधि स्वर। संधि स्वर को पुनः दो भिन्न-भिन्न भागों में बांटा जाता है- १. दीर्घ /सजातीय /सवर्ण या समान स्वर, २. संयुक्त /विजातीय / असवर्ण या असमान स्वर।

मूल स्वर (शांत स्वर या स्थिर स्वर)

हिंदी मूल स्वर ऐसे स्वरों को कहा जाता हैं जिनकी उत्पत्ति की किसी भी तरह की कोई जानकारी नहीं होती हैं। मूल स्वरों को ही शांत स्वर या फिर स्थिर स्वर कहते हैं। इनके स्वरों की कुल संख्या 4 है- अ, इ, उ, ऋ।

संधि स्वर

हिंदी में इनकी कुल संख्या 7 है। संधि स्वर को दो अलग-अलग भागों में बांटा जाता है- १. दीर्घ सजातीय / सवर्ण या समान स्वर, २. संयुक्त / विजातीय / असवर्ण या असमान स्वर।

दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर

जब हिंदी के दो सजातीय या फिर समान स्वर एक दूसरे से जुड़ते हैं, उसके बाद जो नया हिंदी स्वर बनाता है उसे दीर्घ सजातीय / सवर्ण या समान स्वर कहा जाता हैं। हिंदी में इनकी कुल संख्या 3 है- आ, ई, ऊ।

संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर

जब दो विजातीय /भिन्न या असमान स्वर एक दूसरे से जुड़ते हैं, उसके बाद जो नया हिंदी स्वर बनाता है उसे संयुक्त / विजातीय / असवर्ण या असमान स्वर कहते हैं। हिंदी में इनकी कुल संख्या 4 है- ए, ऐ, ओ, औ।

  • दीर्घ स्वर की संख्या 7 है।
  • दीर्घ सजातीय की कुल संख्या 3 है।
  • विजातीय स्वर की संख्या 4 है।

प्रयत्न के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार

हिन्दी भाषा की वर्णमाला में प्रयत्न के आधार पर यानी जीभ के स्पर्श से उच्चारित होने वाले हिंदी स्वर को तीन भागों में बाँटते हैं- १. अग्र स्वर, २. मध्य स्वर, ३. पश्च स्वर।

अग्र स्वर

जिन हिंदी स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र हिस्सा कार्य करता है वे अग्र स्वर कहलाते हैं। हिंदी में इनकी कुल संख्या 4 है। ये स्वर निम्न हैं – इ, ई, ए, ऐ।

मध्य स्वर

जिन हिंदी स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य हिस्सा कार्य करता है उन्हें मध्य स्वर कहते हैं। हिंदी में इनकी कुल संख्या 1 है। ये स्वर निम्न है – अ।

पश्च स्वर

हिंदी में जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च हिस्सा कार्य करता है उन्हें पश्च स्वर कहते हैं। हिंदी में इनकी कुल संख्या 5 है। ये स्वर निम्न है – आ, उ, ऊ, ओ, औ।

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आगत स्वर

बोले जाने वाले आगत स्वर अरबी-फारसी के प्रभाव से आए हैं। हिन्दी भाषा की वर्णमाला में इनकी कुल संख्या सिर्फ और सिर्फ एक (1) ही है। आगत स्वर का उच्चारण आ एवं ओ के मध्य में होता है। ये स्वर है – ऑ ( ॉ )। हिंदी शब्दों में इसका प्रयोग जैसे- डॉक्टर, डॉलर आदि।

व्यंजन वर्ण

जिन हिंदी वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए हिंदी स्वरों की सहायता ली जाती है उन्हें वर्ण व्यंजन कहते हैं। मतलब व्यंजन बिना स्वरों की मदद के बोले ही नहीं जा सकते। हिन्दी वर्णमाला में व्यंजन की संख्या 39 होती हैं जैसे– क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ; ढ़ श्र।

व्यंजन शब्द “वि + अंजन” (यण संधि) से मिलकर बना है। इसमें वि का अर्थ ‘सा’ और अंजन का अर्थ ‘जुड़ना’ होता है। यानी साथ में जुड़ना; जैसे – क् + अ = क। मतलब स्वर की मदद से जिन वर्णों का उच्चारण किया गया हो, वे वर्ण व्यंजन कहलाता है। हिन्दी वर्णमाला में व्यंजन वर्ण के मूल तथा मुख्य तीन भेद हैं – स्पर्श, अंतःस्थ, ऊष्म।

व्यंजन के भेद

  1. स्पर्शीय व्यंजन या वर्गीय व्यंजन
  2. अन्तःस्थ व्यंजन
  3. उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन

स्पर्शीय व्यंजन या वर्गीय व्यंजन

इस प्रकार के वर्णों का उच्चारण करते वक्त मुख या मुहं के किसी भाग का स्पर्श जरुर होता है। इसलिए हिन्दी वर्णमाला में इन्हें स्पर्शीय व्यंजन कहते हैं। स्पर्श यानि (मुख के किसी किसी भाग को छूना) होने वाले व्यंजन वर्णों को जब पांच भागों या वर्गों में बाँटा जाता है, तब इन्हें वर्गीय व्यंजन के नाम से भी जाना जाता है।

हिन्दी वर्णमाला में मूल स्पर्शीय व्यंजन वर्णों की कुल संख्या 16 होती है। कुल स्पर्शीय व्यंजन वर्णों की संख्या 25 है।

वर्गीय व्यंजन

  1. क वर्ग- क ख ग घ ड़ (उच्चारण स्थान – कंठ)
  2. च वर्ग- च छ ज झ ञ (उच्चारण स्थान – तालू)
  3. ट वर्ग- ट ठ ड ढ ण (उच्चारण स्थान – मूर्धा)
  4. त वर्ग- त थ द ध न (उच्चारण स्थान – दन्त)
  5. प वर्ग- प फ ब भ म (उच्चारण स्थान – ओष्ठय्)

अन्तःस्थ व्यंजन

जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण करनें में वायु या हवा का अवरोध कम हो, वे अन्तःस्थ व्यंजन कहलाते हैं। हिन्दी वर्णमाला में इन व्यंजन की कुल संख्या 4 है।
अन्तस्थ निम्न चार हैं – य, र, ल, व

अर्द्ध स्वर या संघर्षहीन

इन स्वरों की ध्वनियों के उच्चारण में उच्चारण अवयवों में कहीं भी पूरा स्पर्श नहीं होता एवं श्वासवायु (सांस हवा) अनवरोधित रहती है। हिन्दी वर्णमाला में (य, व)अर्धस्वर हैं।

लुंठित/प्रकंपित व्यंजन

हिन्दी वर्णमाला में सिर्फ ‘र्‘ लुंठित प्रकंपित व्यंजन होता है। कंपन के साथ उच्चारण करते वक्त जीव्हा (जीभ) की स्थिति का आकार गोल बनता है, इसलिए इसे लुंठित प्रकंपित व्यंजन कहा जाता है। जैसे – राजा ।

पार्श्विक व्यंजन

हिन्दी वर्णमाला में सिर्फ ‘ल‘ व्यंजन पार्श्विक होता है। उच्चारण करते वक्त जीव्हा के दोनों तरफ से वायु (हवा) का निष्कासन होता है, इसलिए इसे पार्श्विक व्यंजन कहा जाता हैं। जैसे – लालू, कालू आदि।

उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन

हिंदी भाषा में उन वर्णों का उच्चारण अत्यधिक संघर्ष के साथ अधिक ऊष्मा का प्रयोग हो तब वह व्यंजन ऊष्म या फिर संघर्षी व्यंजन कहलाता है। हिन्दी वर्णमाला में उष्म व्यंजन या फिर संघर्षी व्यंजन वर्णों की कुल संख्या 4 चार है।
उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन निम्न चार हैं – श, ष, स, ह।

काकल्य व्यंजन या काकलीय व्यंजन

हिन्दी वर्णमाला में सिर्फ ‘ह‘ व्यंजन काकल्य होता है। काकलीय व्यंजन या फिर काकल्य व्यंजन (Glottal consonant) ऐसा व्यंजन है जिसका उच्चारण प्रमुख रूप से कण्ठद्वार (गले) के प्रयोग द्वारा किया जाता है।

व्यंजन वर्णों के अन्य रूप

द्विगुण व्यंजन / उत्क्षिप्त व्यंजन / ताड़नजात व्यंजन / फेका हुआ व्यंजन : जो व्यंजन वर्ण दो गुणों से जुड़कर बना होता हो उसे द्विगुण व्यंजन कहा जाता हैं। द्विगुण व्यंजन कब और कहाँ में प्रयोग होते हैं, इसके आधार पर इनके नाम उत्क्षिप्त या ताड़नजात हैं। द्विगुण व्यंजन को जीव्हा (जीभ) के स्पर्श (touch) से मुख या मुँह बाहर तेजी से फेंक देते हैं, इसलिए इसको फेंका हुआ व्यंजन भी कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में इनकी सिर्फ कुल संख्या 2 है – ड़, ढ़।

इनका प्रयोग किसी भी हिंदी शब्दों के मध्य में या अंत में आते हैं। यह कभी भी शुरू में नहीं आते हैं। जैसे – पढ़ना, लड़ना, घड़ा, चढ़ाना, आदि। यदि ड़, ढ़, किसी भी आधे या फिर कोई भी आधे हिंदी वर्णों के साथ मिलकर किसी भी हिंदी शब्दों के मध्य में आये तब उनमें नुक्ता का प्रयोग नहीं किया जाता है। जैसे – मंडल या मण्डल, पंडित या पण्डित

द्विगुण व्यंजन का प्रयोग कभी भी अंग्रेजी (English) शब्दों के साथ नहीं होता है। जैसे – रोड़, रीड़, इत्यादि।

नुक़्ता

ड़, ढ़, के नीचे जो बिंदु होता है उसे नुक्ता कहा जाता हैं। नुक्ता का मतलब आधा “न्” होता है, जिसका प्रयोग हिंदी शब्दों पर थोडा जोर देनें के लिए किया जाता है। किन्तु अनुस्वार में प्रयुक्त आधे “न्” का प्रयोग हिंदी शब्दों पर जोर देनें के लिए कभी नहीं किया जाता है।

हिन्दी की वर्णमाला में मूल रूप से ‘नुक़्ता‘ अरबी, फारसी के प्रभाव से लिए हैं। नुक़्ते ऐसे व्यंजनों को बनाने के लिए सहायक होते हैं जो पहले से ही मूल लिपि में न हों, जैसे कि ‘ढ़’ मूल देवनागरी वर्णमाला में नहीं था और न ही यह संस्कृत में पाया जाता है।

आगत व्यंजन

हिन्दी भाषा में अंग्रेजी तथा उर्दू के प्रभाव से लिए हुए व्यंजन वर्णों का शुद्ध उच्चारण करने के लिए व्यंजन वर्ण के नीचे जो एक बिन्दु लगाया जाता है, उसे नुक़्ता कहते हैं। नुक्ता लगे हुए व्यंजन वर्णों को ही आगत व्यंजन कहते हैं। इनकी कुल मूल संख्या 5 तथा कुल संख्या 6 है।

  • मूल संख्या 5 = क़ ख़ ग़ ज़ फ़
  • कुल संख्या 6 =अ, क़, ख़, ग़, ज़, फ़ (अ वर्ण नुक़्ता सहित टाइप नहीं हुआ)

ध्यान दें– चार या पांच या फिर उससे अधिक वर्ण वाले हिंदी शब्दों में यदि दो से ज्यदा बार आगत व्यंजन का इस्तेमाल हो तो दूसरे वर्ण पर नुक़्ता का प्रयोग किया जाता हैं।

द्वित्व व्यंजन

जब किसी भी हिंदी शब्द में एक ही व्यंजन दो बार आता है लेकिन पहले वाला आधा हो और दूसरे वाला उसी के आधे से अधिक हो, तब उस वर्ण को द्वित्व व्यंजन कहा जाता हैं।

द्वित्व व्यंजन में ज्यादातर तीन अक्षर निर्मित शब्द ही आते हैं। जैसे – पत्ता, बच्चा, कुत्ता, बिल्ली, दिल्ली, रसगुल्ला, इत्यादि।

आयोगवाह

अयोगवाह हमेशा अपने ही रूप रूप से प्रयोग नहीं होता है, क्यूंकि यह खुद में अयोग्य है; ये सिर्फ साथ चलने में सहयोगी है। हिन्दी की वर्णमाला में इसके दो रूप होते हैं – १. अनुस्वार, २. विसर्ग।

अनुस्वार (ां)

अनुस्वार स्वर के बाद आता है। व्यंजन वर्ण के उपरांत या व्यंजन वर्ण के साथ अनुस्वार और विसर्ग का इस्तेमाल कभी नहीं होता है; क्यूंकि व्यंजन वर्णों में पहले से ही स्वर वर्ण जुड़े रहते हैं। जैसे – कंगा, रंगून, तंदूर।

अनुस्वार की संख्या सिर्फ 1 है – इनमें ऊपर लगी हुई बिंदु का मतलब आधा “न्” होता है।

विसर्ग (ाः)

विसर्ग हमेशा स्वर के उपरांत ही आता है। विसर्ग का उच्चारण करते वक्त “ह / हकार” की ध्वनि आती है। इनकी भी संख्या एक है- अः।

विसर्ग प्रयुक्त सभी शब्द संस्कृत भाषा अर्थात तत्सम शब्द माने जाते हैं – जैसे स्वतः, अतः, प्रातः, दुःख, इत्यादि।

अनुस्वार और विसर्ग लेखन की नजर से स्वर और उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन होते हैं। इन दोनों का योग ना तो स्वर के साथ होता है और न व्यंजन के साथ, इसीलिए इन्हें ‘आयोग’ कहा जाता हैं, फिर ये एक अलग मतलब का वहन करते हैं, इसीलिए “आयोगवाह” कहलाते हैं।

अनुनासिक

हिन्दी की वर्णमाला में अनुनासिक वर्ण के दो प्रकार होते हैं –

  1. चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ )
  2. चन्द्रबिन्दु ( ाँ )

चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ )

चंद्र इंग्लिश के स्वर चिन्ह हैं। क्यूंकि इनका इस्तेमाल इंग्लिश के शब्दानुसार किया जाता है।

चंद्र/स्वनिम चिन्ह के प्रयोग के निम्न नियम हैं –
यह इंग्लिश के मूल शब्दों के साथ प्रयोग में आता है; परिवर्तित शब्दों के साथ कभी भी इनका प्रयोग नहीं होता है। जैसे – पोलिस (मूल शब्द) , पुलिस (परिवर्तित शब्द)
जब अंग्रेजी वर्ण O के आरम्भ और उपरांत में कोई अन्य इंग्लिश का वर्ण अवश्य हो परन्तु O शब्द कभी ना हो; तब ज्यादातर चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ ) का प्रयोग किया जाता हैं। जैसे – डॉक्टर, हॉट, बॉल, कॉफी, कॉपी आदि।

चन्द्रबिन्दु ( ाँ )

चन्द्रबिन्दु के उच्चारण में मुख से ज्यादा एवं नाक से कम साँस निकलती है। इन स्वरों पर चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग किया जाता है जो की शिरोरेखा के ऊपर लगता है।
जब उच्चारण शुद्ध नासिक से हो, वहाँ पर चन्द्रबिन्दु का प्रयोग करें, जैसे वहाँ, जहाँ, हाँ, काइयाँ, इन्साँ, साँप, आदि।
चन्द्रबिन्दु के स्थान पर बिंदु का प्रयोग जहाँ पर ऊपर की ओर आने वाली मात्राएँ जैसे (‌ि ी ‌े ‌ै ‌ो ‌ौ) आएँ, वहाँ पर चन्द्रबिन्दु की जगह पर अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे भाइयों, कहीं, मैं, में, नहीं, भौं-भौं, आदि। इस नियम के अनुसार कहीँ, केँचुआ, सैँकड़ा, आदि शब्द ग़लत हैं।

अनुनासिक और अनुस्वार में अंतर

अनुनासिक एक प्रकार से स्वर है और अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन है। इनके प्रयोग से कुछ शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है। जैसे – हंस (एक जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)।

पंचमाक्षर

वर्णमाला के हर वर्ग के पांचवें वर्णों के समूह को ‘पंचमाक्षर या पञ्चमाक्षर‘ कहा जाता हैं। देवनागरी में पंचमाक्षर की संख्या 5 है – ङ, ञ, ण, न, म।
पंचमाक्षर से बने शब्द जिन्हें अनुस्वार की जगह पर प्रयोग किया गया है – गङ्गा – गंगा, दिनाङ्क – दिनांक, पञ्चम – पंचम, चञ्चल – चंचल, कण्ठ – कंठ, कन्धा – कंधा, कम्पन – कंपन आदि।

अनुस्वार को पंचमाक्षर में बदलने के नियम

  • यदि पंचमाक्षर के उपरांत किसी अन्य वर्ग का कोई भी वर्ण आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होता है। जैसे- वाड्.मय, अन्य, चिन्मय, उन्मुख आदि शब्द वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख के रूप में नहीं लिखे जाते हैं।
  • पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में एक के बाद फिर से दुबारा आ जाए तो पंचम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे – प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन आदि के प्रसंन, अंन, संमेलन रूप नहीं लिखे जाते हैं।
  • जिन हिंदी शब्दों में अनुस्वार के उपरांत य, र, ल, व, ह आये तो वहाँ अनुस्वार अपने मूल रूप में ही रहता है। जैसे – अन्य, कन्हैया आदि।
  • यदि य , र .ल .व – (अंतस्थ व्यंजन) श, ष, स, ह – (ऊष्म व्यंजन) के आरम्भ में आने वाले अनुस्वार में बिंदु के रूप का ही इस्तेमाल किया जाता है चूँकि ये व्यंजन किसी वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं। जैसे – संशय, संयम आदि।

पंचम वर्णों के स्थान पर अनुस्वार

अनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्ण ( ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् – ये पंचमाक्षर कहा जाता हैं) के स्थान पर किया जाता है। अनुस्वार के चिह्न के इस्तेमाल के उपरांत में आने वाला वर्ण क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग और प वर्ग में से जिस वर्ग से संबंधित होता है अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम-वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे –

  • गड्.गा – गंगा
  • चञ़्चल – चंचल
  • झण्डा – झंडा
  • गन्दा – गंदा
  • कम्पन – कंपन

सयुंक्त व्यंजन

जहाँ भी दो या फिर दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, लेकिन देवनागरी लिपि में संयोग के बाद जो रूप-परिवर्तन हो उस कारण इन चार को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं। जैसे-

  1. क्ष = क्+ष
  2. त्र = त्+र
  3. ज्ञ = ज्+ञ
  4. श्र = श्+र

कुछ व्यक्ति क्ष, त्र, ज्ञ, श्र को भी हिन्दी वर्णमाला में गिन लेते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं, अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।

वर्णमाला के वर्णों का उच्चारण स्थान

पंचमाक्षर के उच्चारण स्थान

पञ्चमाक्षर (ङ, ञ, ण, न, म) के संयुक्त रूप से उच्चारण की जगह नासिक्य होता है। लेकिन भिन्न-भिन्न पञ्चमाक्षरों का उच्चारण की जगह ऊपर दी गई सूची के अनुसार होता है।

हिंदी वर्णमाला में 52 अक्षर कौन-कौन से होते हैं?
हिन्दी वर्णमाला के कुल 52 अक्षर निम्न हैं- अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ; ढ़, श्र।

हिंदी वर्णमाला में अ से ज्ञ तक में कितने अक्षर होते हैं?
अ से ज्ञ तक हिंदी वर्णमाला में कुल अक्षर 52, मानक अक्षर 52, लेखन के आधार पर अक्षर 52, मूल या मुख्य अक्षर 44, उच्चारण के आधार पर कुल अक्षर 45 होते है।

हिन्दी वर्णमाला में मूल स्वर कितने होते हैं?
11 – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

पर्यायवाची शब्द के अनेक उदाहरण वर्णमाला क्रम में

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