मां पर कविता

माँ पर लोकप्रिय कविताएं | Poem on Mother

Poem on Mother in Hindi: दोस्तों विश्व में कोई ऐसी कलम आज तक नहीं बनी हैं, जो माँ शब्द की परिभाषा लिख सके। कहते हैं कि संसार में माँ भगवान का दूसरा रूप होती है। माँ की ममता का कोई मूल्य नहीं हैं, वे लोग बहुत ही भाग्यशाली जिनकी माँ हैं। विद्वानों ने कहा है कि जिनके सिर पर माँ का हाथ होता हैं, किस्मत भी उसका साथ नहीं छोड़ती है। इस पोस्ट में माँ पर प्रसिद्ध कवियों की रचनाएँ (maa par poem in hindi) शेयर की है.

माँ पर लोकप्रिय कविताएं | Poem on Mother

वो है मेरी माँ (maa par kavita)
मेरे सर्वस्व की पहचान
अपने आँचल की दे छाँव
ममता की वो लोरी गाती
मेरे सपनों को सहलाती
गाती रहती, मुस्कराती जो
वो है मेरी माँ।

प्यार समेटे सीने में जो
सागर सारा अश्कों में जो
हर आहट पर मुड़ आती जो
वो है मेरी माँ।

दुख मेरे को समेट जाती
सुख की खुशबू बिखेर जाती
ममता की रस बरसाती जो
वो है मेरी माँ।

देवी नांगरानी
maa poem in hindi

रुला देने वाली मदर डे कविता (Sad Poem on Maa)

घुटनों से रेंगते-रेंगते,
कब पैरों पर खड़ी हुई,
तेरी ममता की छाँव में,
जाने कब बड़ी हुई,
काला-टीका दूध मलाई
आज भी सब कुछ वैसा है,
मैं ही मैं हूँ हर जगह,
माँ प्यार ये तेरा कैसा है?
सीधी-साधी, भोली-भाली,
मैं ही सबसे अच्छी हूँ,
कितनी भी हो जाऊ बड़ी,

“माँ!” मैं आज भी तेरी बच्ची हूँ..

अमृता वर्मा

जमीन पर जन्नत (माँ) (Poem of Mother)

जमीन पर जन्नत मिलती है कहाँ
दोस्तों ध्यान से देखा करो अपनी मा

जोड़ लेना चाहे लाखों करोड़ो की दौलत
पर जोड़ ना पाओगे कभी माँ सी सुविधा

आते हैं हर रोज फरिश्ते उस दरवाजे पर
रहती है खुशी से प्यारी माएं जहाँ जहाँ

छिन लाती है अपनी औलाद की खातिर खुशियाँ
कभी खाली नही जाती माँ के मुहं से निकली दुआ

वो लोग कभी हासिल नही कर सकते कामयाबी
जो बात बात पर माँ की ममता में ढूँढते है कमियां

माँ की तस्वीर ही बहुत,बड़े से बड़ा मन्दिर सजाने को
माँ से सुंदर दुनिया में नही होती कोई भी प्रतिमा

माँ का साथ यूँ चलता है ताउम्र आदमी संग
जैसे कदमों तले झुका रहता हो सदा आसमां

माँ दिखती तो है जिस्म के बाहर सदा
पर माँ है रूह में मौजुद बेपनाह होंसला

कभी गलती से भी बुरा ना सोचना माँ के बारे में
ध्यान रहे माँ ने ही रचा हर जीवन का घोंसला

मर कर भी बसी रहती है माँ धरती पर ही अ नीरज
कभी नही होता औलाद की खातिर उसके प्रेम का खात्मा

-नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

प्यारी प्यारी मेरी माँ (Best Poems on Mom)

प्यारी प्यारी मेरी माँ
सारे जग से न्यारी माँ…

लोरी रोज सुनाती है,
थपकी दे सुलाती है….

जब उतरे आगन में धुप,
प्यार से मुझे जगाती है….

देती चीजे सारी माँ,
प्यारी प्यारी मेरी माँ….

ऊँगली पकड़ चलाती है,
सुबह-शाम घुमाती है….

ममता भरे हुए हातो से,
खाना रोज खिलाती है….

देवी जैसी मेरी माँ,
सारी जग से न्यारी माँ….

प्यारी प्यारी मरी माँ
प्यारी प्यारी मेरी माँ…

माँ और भगवान (Emotional Poems)

मैं अपने छोटे मुख कैसे करूँ तेरा गुणगान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया
ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय जुड़ाया
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

दे मातृत्व देवकी को यसुदा की गोद सुहाई
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई
सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

तेरी समता में तू ही है मिले न उपमा कोई
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित समोई
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा ज्ञान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

कभी न विचलित हुई रही सेवा में भूखी प्यासी
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

‘विकल’ न होने दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुख में महतारी
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

जगदीश प्रसाद सारस्वत ‘विकल’

है माँ (Hindi Poem on Mother)

हमारे हर मर्ज की दवा होती है माँ….
कभी डाँटती है हमें, तो कभी गले लगा लेती है माँ…..
हमारी आँखोँ के आंसू, अपनी आँखोँ मेँ समा लेती है माँ…..
अपने होठोँ की हँसी, हम पर लुटा देती है माँ……
हमारी खुशियोँ मेँ शामिल होकर, अपने गम भुला देती है माँ….
जब भी कभी ठोकर लगे, तो हमें तुरंत याद आती है माँ…

दुनिया की तपिश में, हमें आँचल की शीतल छाया देती है माँ…..
खुद चाहे कितनी थकी हो, हमें देखकर अपनी थकान भूल जाती है माँ….
प्यार भरे हाथोँ से, हमेशा हमारी थकान मिटाती है माँ…..
बात जब भी हो लजीज खाने की, तो हमें याद आती है माँ……
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना सिखाती है माँ…….
लब्जोँ मेँ जिसे बयाँ नहीँ किया जा सके ऐसी होती है माँ…….
भगवान भी जिसकी ममता के आगे झुक जाते हैँ

द्वारा कुसुम

आबशारों-झरने (Heart Touching Poems on Mom)

खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर, अपनी आँख के इशारों से
माँ क्या शै होती, पूछ लेना कभी ये बात तुम प्यारी बहारों से
नही जरूरत माँ के रहते किसी और चाहत की हमें जमाने में
भीगे रहते है हम तो सदा, माँ की ममता के हसीन आबशारों से

माँ की दुआ तो हर हाल में कबूल होती है
माँ के रहते जन्नत जमीन पर वसूल होती है
फरिश्ते भी जिसकी चाहत पाने को तरसते
माँ तो वो अदभुत अनोखा प्यारा फूल होती है
तुम से ज्यादा है कौन चमकीला,पूछ लेना ये बात तुम सितारों से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर,अपनी आँख के इशारों से

माना माँ की बोली कभी कभी कड़वी,खारी होती है
पर माँ हर गुड़ शक्कर,हर मीठे से प्यारी होती है
चाहे अनपढ़ ही क्यूं ना हो कोई भी माँ जमीन की
पर उसकी सीखों में जीवन जीने की बात छुपी सारी होती है
सुंदर होती है हर माँ तो,जमीन के हसीन से हसीन नजारों से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर,अपनी आँख के इशारों से

माँ तो जीती है हजारों सदियों तक,वो कभी भी ना मरती है
माँ हर रूह में,हर धड़कन में जीवन जीने का हौसला भरती है
हर देवता से बहुत ज्यादा बड़ी होती है माँ की शख्सियत,समझो इसे
रब भी वो कर नही सकता, जो औलाद की खातिर माँ करती है
बचा लेती है माँ अपनी औलाद को दुःख दर्द के बेदर्द अंगारो से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर, अपनी आँख के इशारों से

माँ क्या शै होती पूछ लेना कभी ये बात तुम प्यारी बहारों से
नही जरूरत माँ के रहते किसी और चाहत की हमें जमाने में
भीगे रहते है हम तो सदा, माँ की ममता के हसीन आबशारों से

नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

मैं माँ को मानता हूँ (Hindi Poem on Mother)

बचपन में माँ कहती थी
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…

बचपन में माँ कहती थी
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…

मैं आज भी रुक जाता हूँ
कोई बात है जो डरा
देती है मुझे…

यकीन मानो,
मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता…

मैं माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।

दही खाने की आदत मेरी
गयी नहीं आज तक…
दही खाने की आदत मेरी
गयी नहीं आज तक..

चाहे हम बड़े हो जाये मगर हम अपनी माँ के लिए तो बच्चे ही है…

माँ कहती थी।

घर से दही खाकर निकलो
तो शुभ होता है..
मैं आज भी हर सुबह दही
खाकर निकलता हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नही मानता….

मैं माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।

आज भी मैं अँधेरा देखकर डर जाता हूँ,
भूत-प्रेत के किस्से खोफा पैदा करते हैं मुझमें,
जादू, टोने, टोटके पर मैं यकीन कर लेता हूँ।

बचपन में माँ कहती थी
कुछ होते हैं बुरी नज़र लगाने वाले,
कुछ होते हैं खुशियों में सताने वाले…
यकीन मानों, मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता….

मैं माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।

मैंने भगवान को भी नहीं देखा जमीं पर
मैंने अल्लाह को भी नहीं देखा
लोग कहते है,
नास्तिक हूँ मैं
मैं किसी भगवान को नहीं मानता

लेकिन माँ को मानता हूँ
में माँ को मानता हूँ।।

हज़ारों दुखड़े सहती (emotional maa par kavita)

हज़ारों दुखड़े सहती है माँ
फिर भी कुछ ना कहती है माँ

हमारा बेटा फले औ’ फूले
यही तो मंतर पढ़ती है माँ

हमारे कपड़े कलम औ’ कॉपी
बड़े जतन से रखती है माँ

बना रहे घर बँटे न आँगन
इसी से सबकी सहती है माँ

रहे सलामत चिराग घर का
यही दुआ बस करती है माँ

बढ़े उदासी मन में जब जब
बहुत याद में रहती है माँ

नज़र का कांटा कहते हैं सब
जिगर का टुकड़ा कहती है माँ

मनोज मेरे हृदय में हरदम
ईश्वर जैसी रहती है माँ

मनोज ‘भावुक’

माँ मतलब परछाई (Maa pe Kavita)

माँ के होते कभी नही होती जीवन में कठिनाई है
माँ ताउम्र बनकर रहती अपनी औलाद की परछाई है

दिखता है जिसमे केवल स्नेह माँ तो वो नजर है
कभी नही मरती कोई भी माँ, वो तो परी अजर अमर है

लोक परलोक की, माँ ही होती है सबसे खूबसूरत आत्मा
माँ के कदमों में सदा झुका रहता है पूर्ण परमात्मा

माँ ही धरा पर जीवन लिखने वाली अनोखी कलम है
समझो औरत का जन्म ही धरा पर जीवन का जन्म है

माँ राहत, माँ चाहत, माँ पहचान, माँ ही सम्मान है
माँ जरूरत, माँ मूरत, माँ निदान, माँ ही अभिमान है

माँ जमीन पर रहकर जन्नत का अहसास दिलाती है
माँ छोटे परिंदों को हौसलों का बड़ा आकाश दिलाती है

माँ सितार, माँ बहार माँ ही देवों की अदभुत बोली है
माँ अधिकार, माँ प्यार, माँ कंगन, माँ ही चंदन रोली है

माँ सदा सुखों से कराती अपनी औलाद की मुलाकात है
पहुंचाती जो रूह को सकून माँ वो चांदनी रात है

जो महकाती सांसो को माँ की चाहत वो कस्तूरी है
जिस पर है सारी धरा आश्रित माँ ही वो धुरी है

माँ का प्रेम ही दुनिया का सबसे सुगंधित चन्दन है
नीरज की ओर से हर माँ को शत शत वन्दन है

नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

माँ पर रुला देने वाली कविता (meri maa poem in hindi)

मेरे सर पर भी माँ की दुवाओं का साया होगा,
इसलिए समुन्दर ने मुझे डूबने से बचाया होगा

माँ की आघोष में लौट आया है वो बेटा फिर से..
शायद इस दुनिया ने उसे बहुत सताया होगा

अब उसकी मोहब्बत की कोई क्या मिसाल दे,
पेट अपना काट जब बच्चों को खिलाया होगा

की थी सकावत उमर भर जिसने उन के लिए
क्या हाल हुआ जब हाथ में कजा आया होगा
कैसे जन्नत मिलेगी उस औलाद को जिस ने
उस माँ से पैहले बीवी का फ़र्ज़ निभाया होगा

और माँ के सजदे को कोई शिर्क ना कह दे
इसलिए उन पैरों में एक स्वर्ग बनाया होगा

माँ के आँचल पर कविता (poem on maa in hindi)

जितना मैं पढता था, शायद उतना ही वो भी पढ़ती,
मेरी किताबों को वो मुझसे ज्यादा सहज कर रखती थी,

मेरी कलम, मेरी पढने की मेज़, उसपर रखी किताबे,
मुझसे ज्यादा उसे नाम याद रहते, संभालती थी किताबे,

मेरी नोट-बुक पर लिखे हर शब्द, वो सदा ध्यान से देखती,
चाहे उसकी समझ से परे रहे हो, लेकिन मेरी लेखनी देखती थी,

अगर पढ़ते पढ़ते मेरी आँख लग जाती, तो वो जागती रहती,
और जब मैं रात भर जागता, तब भी वो ही तो जागती रहती,

और मेरी परीक्षा के दिन, मुझसे ज्यादा उसे भयभीत करते थे,
मेरे परीक्षा के नियत दिन रहरह कर, उसे ही भ्रमित करते थे,

वो रात रात भर, मुझे आकर चाय काफी और बिस्कुट की दावत,
वो करती रहती सब तैयारी, बिना थके बिना रुके, बिन अदावात,

अगर गलती से कभी ज्यादा देर तक मैं सोने की कोशिश करता,
वो आकर मुझे जगा देती प्यार से, और मैं फिर से पढना शुरू करता,

मेरे परीक्षा परिणाम को, वो मुझसे ज्यादा खोजती रहती अखबार में,
और मेरे कभी असफल होने को छुपा लेती, अपने प्यार दुलार में,

जितना जितना मैं आगे बढ़ता रहा, शायद उतना वो भी बढती रही,
मेरी सफलता मेरी कमियाबी, उसके ख्वाबों में भी रंग भरती रही,

पर उसे सिर्फ एक ही चाह रही, सिर्फ एक चाह, मेरे ऊँचे मुकाम की,
मेरी कमाई का लालच नहीं था उसके मन में, चिंता रही मेरे काम की,

वो खुदा से बढ़कर थी पर मैं ही समझता रहा उसे नाखुदा की तरह जैसे,
वो मेरी माँ थी, जो मुझे जमीं से आसमान तक ले गयी, ना जाने कैसे…

ममता की मूरत (maa poem in hindi)

क्या सीरत क्या सूरत थी
माँ ममता की मूरत थी

पाँव छुए और काम बने
अम्मा एक महूरत थी

बस्ती भर के दुख सुख में
एक अहम ज़रूरत थी

सच कहते हैं माँ हमको
तेरी बहुत ज़रूरत थी

मंगल नसीम

मेरी प्यारी माँ पर कविताएं (hindi poem on maa)

माँ की ममता करुणा न्यारी,
जैसे दया की चादर
शक्ति देती नित हम सबको,
बन अमृत की गागर
साया बन कर साथ निभाती,
चोट न लगने देती
पीड़ा अपने उपर ले लेती,
सदा सदा सुख देती
माँ का आँचल सब खुशियों की,
रंगा रंग फुलवारी
इसके चरणों में जन्नत है,
आनन्द की किलकारी
अदभुत माँ का रूप सलोना,
बिलकुल रब के जैसा
प्रेम के सागर सा लहराता,
इसका अपनापन ऐसा….

हर एक साँस की कहानी है तू
हर एक साँस की कहानी है तू
परी कोई प्यारी आसमानी है तू
जीती मरती है तू औलाद की खातिर
सिर्फ ममता की भूखी दीवानी है तू

तेरी गोदी से बढकर नही कोई भी चमन
हमेशा फरिश्तों से घिरा रहता था तन
गुजरा है तेरे संग हर लम्हा जन्नत में
ताउम्र महसूस होती रहेगी तेरी चाहतों की तपन
इश्क करना फितरत है तेरी
हर देवता की जानी पहचानी है तू

तू अदभुत साँस बनकर जिस्म को महकाती
हसीन जन्नत खुद तेरे करीब आ जाती
अजीब कशिश है तेरी चाहतों में माँ
तू रोते बालक को पल में हंसाती
कोई नही तुझसे बढकर खुबसुरत जग में
हजारों परियों की रानी है तू

दुआ है तेरी कोख से हो हर बार जन्म
भूलकर भी कभी ना हो तुझे कोई गम
तुझ जैसा कोई और चाह नही सकता
तू ही सच्ची दिलबर तू ही सच्ची हमदम
हर करिश्मे से है तू बड़ी
खुदा की जमीन पर मेहरबानी है तू

नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’
आज का सुविचार हिंदी मेंधनतेरस पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

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