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What is Nationalism in Hindi? – राष्ट्रवाद क्या है, भारत में राष्ट्रवाद इतिहास, राष्ट्रवाद के रूप, महत्व , लाभ , गुण, अवगुण व दोष, कारण

What is Nationalism (Rashtravad) Forms of Nationalism, Nationalism History, Importance of Nationalism, demerits and faults, Nationalism in India in Hindi

सत्रहवीं शताब्दी में राष्ट्र शब्द का अभिप्राय राज्य की जनसँख्या से हुआ करता था चाहे उसमें जातीय एकता हो या ना हों, 1772 के पौलैंड विभाजन के बाद राष्ट्र काफी प्रचलित हुआ. इसका अर्थ देशभक्ति से लिया जाने लगा. 18वीं शताब्दी के अंत में एक राजनितिक शक्ति के रूप में इसका उदय हुआ और 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में राष्ट्र के अर्थ राजनितिक स्वतंत्रता अथवा प्रभुसत्ता से लगाया गया चाहे वह प्राप्त कर ली हो या वांछित हो.

राष्ट्रवाद का अभिप्राय – What is Meaning of Nationalism in Hindi

राष्ट्रवाद का सिमित अर्थ एक ऐसी एकता की भावना या सामान्य चेतना जो राजनितिक, एतिहासिक, धार्मिक, भाषायी, जातीय , सांस्कृतिक व् मनोवेज्ञानिक तत्वों पर आधारित रहती है. राष्ट्रवाद उस एतिहासिक प्रतिक्रिया का प्रतिपादन करता हैं जीके द्वारा राष्ट्रीयता, राजनितिक एककों का रूप धारण कर लेती हैं. यह वह भावना हैं जिससे प्रेरित होकर वे लोग एक निश्चित और सशक्त राष्ट्रीयता का निर्माण करते हैं और संसार में अपने लिए विशिष्ट पहचान बनाना चाहते हैं. राष्ट्रवाद की भावना एक प्रकार की समूह भावना हैं.

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राष्ट्रवाद के रूप – Forms of Nationalism in Hindi

राष्ट्रवाद के कई रूप होते हैं जैसे-

  • जातीयता पर आधारित – जर्मन में राष्ट्रवाद का यही रूप प्रचलित हुआ. जर्मन जाती को संसार में शीर्ष स्थान दिलाना.
  • राज्य और सनिधान के प्रति निष्ठा – अमरीका और इंग्लेंड जसे देशो में राष्ट्रवाद सामाजिक उदेश्यों और संविधान के प्रति निष्ठावान बने रहते के रूप में प्रयुक्त हुआ.
  • विदेशियों के प्रभुत्व से आजादी – एशिया, अफ्रीका के राष्ट्रों के लिए राष्ट्रवाद राष्ट्रिय स्वतंत्रता को प्राप्त करना था.
  • धर्म के साथ समीकृत – पाकिस्तान में राष्ट्रवाद की भावना मुस्लिम धर्म के साथ एकीकृत हैं.
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात राष्ट्रवाद – देश के चहुमुखी आर्थिक , सामाजिक, राजनितिक, सांस्कृतिक उन्नति करने से हैं.

राष्ट्रवाद के निर्माण में सहायक तत्व – Supporting Elements in the Formation of Nationalism in Hindi

  • जातीय एकता – इंग्लैंड में सेक्शन, नाक्रिक तथा लेटिन जातियों का सम्मिश्रण के परिणामस्वरूप राष्ट्र का निर्माण ह़ा. स्विस राष्ट्र में लेटिन ट्यूटन तथा स्लोवानिक जातियों के सम्मिश्रण से स्वीटजरलैंड राष्ट्र का निर्माण हुआ. हिटलर के नेत्रत्व में नाजी जाती ने जर्मनी को संसार में उग्र राष्ट्रवाद के रूप में स्थापित किया. बाल्कन, यूरोप व् इंग्लॅण्ड में कई जातियों का सम्मिश्रण रहा.
  • भाषा की एकता – 16वीं शतब्दी के बाद राष्ट्रीयता के विकास में भाषा ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. प्रत्येक राष्ट्र व् उसमें रहने वाले लोगो ने अपनी भाषा तथा अपने साहित्य व् साहित्यकारों पर गर्व किया. भाषा विचार व् भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम बना. सामान्य एतिहासिक परम्पराओं को जीवित रखने एवं जनता में राष्ट्रीयता का भाव उत्पन्न करने में भाषा एक सशक्त माध्यम साबिक हुई. परन्तु ऐसे भी राष्ट्र हैं जिनमें भाषा की विविधता हैं. जैसे-भारत में बहुभाषीय लोग रहते हैं स्विट्जरलैंड के लोग तीन प्रकार की भाषा बोलते हैं.
  • धर्म की एकता – प्रारंभ में राष्ट्रीयता के विकास में धर्म का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा. यहूदियों के लिए धर्म ही राष्ट्रिय जीवन का प्रमुख श्रोत रहा. तुर्कों ने यूनानियों के ऊपर शताब्दियों तक अत्याचार किए लेकिन यूनानी अपने ग्रीक केथोलिक चर्च के करा राष्ट्रीयता के सूत्र में आबद्ध रहे. पाकिस्तान की राष्ट्रीयता का मूल आधार इस्लाम धर्म हैं.
  • भोगोलिक एकता – राष्ट्रवाद के निर्माण में मात्रभूमि के महत्व को बताते हुए आधुनिक राष्ट्रवाद के आध्यात्मिक जनक मेजिनी ने कहा हैं हमारा देश अपनी सामान्य कर्मशाला हैं जहाँ श्रम के उपकरण और औजार जिनका हम सबसे अधिक लाभपूर्वक उपयोग कर सकते हैं, एकत्रित होते हैं. देश की भोगोलिक एकता को राष्ट्रवाद का निर्माणकारी तत्व माना जाता हैं. जैसे पवित्र नदी गंगा भारत में राष्ट्रवाद के भाव को अभिव्यक्त करती हैं.
  • विचारों और आदर्शो की एकता या सामाजिक संस्कृति – राष्ट्रिय साहित्य , शिक्षा, संस्कृति और कला राष्ट्रीयता के कारण और परिणाम दोनों हैं. प्रत्येक राष्ट्र राष्ट्रिय भावना को सुदूर्ण करने के लिए कुछ तत्वों का सिर्जन व् आविष्कार करता हैं. जैसे-राष्ट्र भाषा का विकास, राष्ट्रिय वेशभूषा, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्र्पशु, पुष्प, पक्षी, आधी राष्ट्रिय गौरव के कुछ प्रतिक चुने जाते हैं राष्ट्रिय जायकों के स्मारक बनवाए जाते हैं. जिनके आगे सारा राष्ट्र नतमस्तक होता हैं और राष्ट्रिय इतिहास की वीर गाथाओं का चित्रण करने वाले लोकप्रिय गीतों, चित्रों , प्रतिमाओं के माध्यम से लोगों के हृदय में राष्ट्र के प्रति प्रेरणा का संचार किया जाता हैं.
  • कठोर व् विदेशी शासन के प्रति सामान्य अधीनता – इनके परिणाम-स्वरुप राष्ट्रवाद का भाव सुदूर्ण होता हैं. हिटलर और मुसोलिनी के कठोर शासनकाल में जर्मनी और इटली में राष्ट्रवाद काफी प्रखर हुआ. यूरोप में राष्ट्रीयता का ऐसा भाव जो राजनितिक दमन के परिणामस्वरूप आत्मचेतना के रूप में विकसित हुआ. 1870 के फ्रांस प्रशा युद्ध के पश्चात फ़्रांस में राष्ट्रवाद की भावना बहुत तीव्र हो गई. नेपालियाँ की दमनकारी नीतियों से स्पेंवासिओं के हृदय में राष्ट्रवाद के भाव पैदा हुए. पोलैंड के विभाजन ने पोलैंडवासिओं के हृदय में राष्ट्रवाद की आग जला दी. भारत में 150 वर्षो तक अंग्रेजो के दमनकारी शासन ने देशवासियों को स्वाधिनत के लिए संगठित होकर राष्ट्रिय आन्दोलन करने को प्रेरित किया.

राष्ट्रवाद का इतिहास – Nationalism History in Hindi

राष्ट्रवाद एक आधुनिक सिद्धांत हैं, परन्तु इसका इतिहास बहुत प्राचीन हैं इसके विकास क्रम को निम्नलिखित चरणों में बांटा जा सकता हैं.

  • प्राचीन यूनान – कबाइली वर्ग की एकता ने राजनितिक रूप धारण किया. यूनान के नगर राज्यों में स्थानीय देशभक्ति विद्दमान थी.
  • रोम – रोम साम्राज्य एपीआई सार्भोमिक सांस्कृतिक विविधता के करा राष्ट्रीयता का भाव विकसित नहीं कर सका. क्योकिं इन नगर राज्यों की अपनी अपनी विशिष्ट स्थानी संस्थाएं थी.
  • मध्य युग – यूरोपियन इतिहास में मध्य युग राष्ट्रवाद के उत्त्थान के लिए उपयुक्त समाया नहीं था, क्युकी सामंतवाद चरम सीमा पर था. अत: राष्ट्रवाद की भावना का उदय नहीं हो सका, लकिन मध्य युग के अंत में इटली के दांते ने और इंग्लैंड में चोसर ने मात्रभूमि का प्रयोग किया. राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की भावना को प्रेरणा दी. मध्य युग के अंत व् आधुनिक युग के प्रारंभ में मेकियावली को आधुनिक काल का प्रथम राष्ट्रवादी कहा सकते हैं. उसने इटली में राष्ट्रवाद को प्रमुख तत्व माना. इंग्लैंड और फ्रांस में शतवर्षीय युद्ध प्रारंभ हुआ. इसके कारण डू देशो में राष्ट्रवाद की भावना तेजी से फेलने लगी . फ्रांस में जॉन ऑफ़ आर्क राष्ट्रिय भावना का जीवित प्रतीक बना. उसने अपने बलिदान द्वारा यह प्रकट किया की जब कोई राष्ट्र जाग उठता हैं तब अपने भाग्य का स्वयं ही निर्माण करना चाहता हैं और किसी अन्य देश की अधीनता में नहीं रहना चाहता हैं. स्पेन में धर्मयुद्धों ने राष्ट्रवाद की भावना के विकास में प्रचुर योगदान दिया.
  • नवजागरण और धर्म सुधार आन्दोलन – इन दोनों आन्दोलन ने चर्च के सार्वभोम राज्य का सपना चूर कर दिया. धर्म सुधार आंदोलनों ने राष्ट्रिय नरेशो का समर्थन किया तथा प्रजाजनों को उनकी आज्ञा का पालन करने को बाध्य किया. इंग्लैंड, जर्मनी और फ्रांस में धार्मिक और वैधानिक युद्ध हुए. बेस्टफेलिया की संधि ने राष्ट्रिय राज्यों की व्यवस्था को सबसे पहले खुली मान्यता दी. 17वीं शताब्दी में स्पेन, स्वीडन नार्वे, डेनमार्क , फ्रांस, पुर्तगाल आदि में राष्ट्रवाद के बिज फूटने लगे. 1972 में पोलैंड विभाजा ने राष्ट्रवाद के सिद्धांत को पुन: सामने ला दिया.

राष्ट्रवाद का महत्व , लाभ , गुण – Importance of Nationalism, Benefits, Qualities

  • राष्ट्रवाद एक महान संयोगी तत्व के रूप में देश को एकता के सूत्र पिरोने वाला प्रमुख तत्व हैं. एकता और स्वतंत्रता के वाहन के रूप में एवं समनव्यकारी सृजनात्मक शक्ति के रूप में हैं.
  • शक्तिशाली राष्ट्रिय राज्यों का उत्थान राष्ट्रवाद के फलस्वरूप हुआ. 19वीं और 20वीं शताब्दी में राष्ट्रवाद सर्वोच्च शिखर पर पहुँच गया.
  • पश्चिम में लोकतंत्र के विकास की दिशा में इससे पहला कदम माना जा सकता हैं.
  • साम्राज्यवादी प्रभुत्व व् उपनिवेशवाद से मुक्ति राष्ट्रवाद के प्रभाव से मिली. तुर्की और आस्ट्रिया जैसे राष्ट्रिय राज्यों के उत्कर्ष में सहायता प्रदान की.
  • राष्ट्रवाद एक नेतिक आधार भी हैं. जिस प्रकार व्यक्ति राष्ट्र का अंग हैं उसी प्रकार राष्ट्र विश्व समाज का अंग हैं.
  • राष्ट्रवाद शांतिपूर्ण अंतराष्ट्रीय सामान के निर्माण में रचनात्मक योगदान देता हैं . शांतिपूर्ण राष्ट्रवाद भवन की पहली मंजिल हैं और दूसरी मंजिल अंतराष्ट्रीय विकास हैं. राष्ट्रवाद सम्पूर्ण विश्व के लिए लाभदायक हैं.

राष्ट्रवाद के अवगुण व दोष (Nationalism’s demerits and faults in Hindi

  • राष्ट्रवाद विकृत होकर विस्तारवादी आक्रामक व् उग्र साम्राज्यवादी निति एवं विश्व शान्ति का संहारक भी बन जाता हैं. रबिन्द्रनाथ टेगोर ने इसे एक प्रकार की बर्बरता बताया हैं. राष्ट्रवाद एक दुधारू तलवार के रूप में हैं जो दोनों और से काटती हैं. इसका एक पक्ष रचनात्मक एवं दुसरा संहारात्मक हैं.
  • राष्ट्रवाद व्यक्ति पर ध्यान केन्द्रीय करने की सलाह देता हैं वहीँ अंतराष्ट्रीय करने की सलाह देता हैं वहीँ अंतर्राष्ट्रीय उसे पाने राष्ट्र से आगे बढ़कर सम्पूर्ण मानवता के बारे में सोचने को प्रेरित करता हैं.
  • राष्ट्रवाद ने सेनिक्वाद को प्रबल बनाया हैं. इसके द्वारा सबल राष्ट्रों में शक्तिशाली बनने की प्रतिस्पर्धा जागती हैं, परिणामस्वरूप सेन्याकरण को बल मिलता हैं. जिनके फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय पटल पर प्रथम व् दित्तीय विश्व युद्ध हुए.
  • विकृत राष्ट्रवाद विश्व शान्ति के मार्ग में बाधक हैं . अहंकारी राष्ट्रवाद के प्रभाव में देश का बहुसंख्यक वर्ग अल्पसंख्यकों के हितों पर प्रहार करता है. उनके प्रति असहिष्णु बनकर देश में वैमनस्यता का भाव पैदा करता हैं. रबिन्द्रनाथ टेगोर ने राष्ट्रवाद का शोषण की संगठित शक्ति बताया है.
  • राष्ट्रवाद जातीयता का अवांछनिय रूप धारण करके दुसरे राष्ट्रों से अपने को श्रेष्ट मानने लगता हैं. यूरोप में गोरी जातियों ने राष्ट्रवादी विचारधारा से अपने साम्राज्यवादी विचारधारा से अपने साम्राज्यवाद के ओचित्य को सिद्ध कर दिया.

भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India in Hindi)

भारत में राष्ट्रवाद का उदय कोई निश्चित घटना का परिणाम नहीं हैं, बल्कि सदियों से चले आ रहे असंतोष का परिणाम है. भारत में राष्ट्रवाद की भावना प्राचीनकाल से ही विद्दमान रही है. प्राचीनकाल के चार धाम, पवित्र नदियों, धर्म, संस्कृति , रीतिरिवाज व् सांस्कृतिक परम्पराओं ने देश को राष्ट्रीयता के सूत्र में बांधा, बेदिक काल में अथर्ववेद में कहा हैं “वरुण राष्ट्र को अविचल करे, ब्रस्पति राष्ट्र को स्थिर करे, इंद्र राष्ट्र को सुदूर्ण करें और अग्निदेव राष्ट्र को निश्छल रूप से धारण करे”. भारत में भोद्धिक पुनर्ज्गरण आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का महत्वपूर्ण कारण था. राष्ट्रवाद के प्रसार और प्रभाव से स्वराज्य प्राप्ति की लालसा बलवती होती गई और अंत में राष्ट्रवादी विचारवादी विचारधारा ने ही भारत को स्वतंत्रता दिलाई.

भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण (Due to the rise of nationalism in India in Hindi)

  • 1857 की क्रान्ति – प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई , इसे सेनिक विद्रोह की संज्ञा दी गई.
  • सामजिक व् धार्मिक आन्दोलन – 19वीं सदी के प्रारंभ में सामजिक व् धार्मिक क्षेत्र में ब्रह्रा समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, थियोसोफिकल सोसायटी, प्रार्थना सामान आदि ने जनता में फ़ले अंधविश्वास, कुप्रथाओं की मानसिकता से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता के सूत्र के बाँधने में भूमिका निभाई.
  • मुस्लिम सुधारवादी आन्दोलन – सैयद अहमद बरेलवी ने वहाबी आन्दोलन के द्वारा बिर्टिश विरोधी भावनाएं जाग्रत कर मुस्लिम समाज को संगठित किया. मोहम्मद इकबाल ने सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा गीत के माध्यम से राष्ट्रवाद की भावना विकसित की.
  • बिर्टिश शासन की दमनकारी निति – इसमें लॉर्ड लिंटन का दमनकारी शासन-काल 1876-1880 में अपने कार्यशेली से भर्तियों में अंग्रेजो शासन के प्रति असंतोष की लहर पैदा कर दी. इसी काल में 1877 में दिल्ली में भव्य दरबार का आयोजन ऐसे समय पर किया गया. जब दक्षिण भारत अकाल और महामारी से जूझ रहा था वर्नाक्युलर एक्ट , आमर्स एक्ट, अफगान युद्ध और अंग्रेजो द्वारा देश का आर्थिक शोषण ने भी देश-वासियों में राष्ट्रीयता का भाव पैदा किया.
  • संचार व् यातायात के साधनों का विकास – यद्दपि बिर्टिश साम्राज्य को सुदूर्ण करने के लिए इनका विकास किया गया था परन्तु इन साधनों ने देश की विशाल जनता को एकता के सूत्र में बांधकर भोगोलिक एकता को सुदुर्नता प्रदान की.
  • पाश्चात्य शिक्षा व् संस्कृति – यद्दपि अंग्रेजो शिक्षा का प्रचार-प्रसार अंग्रेजो ने अपने हितों की पूर्ति के लिए किया था. पर पाश्चात्य राजनितिक विचारकों जैसे बेन्थम, जॉनलॉक, रूसो, हबर्ट स्पेंसर आदि के व्यक्तिगर स्वतंत्रता, आधिकार व् राज्य के निरंत्रण की सिमित्त्ता के विचारों ने देश की जनता को प्रेरित किया.
  • भारतीय प्रेस व् साहित्य – भारतीय समाचार पात्रों व् साहित्यों ने राष्ट्रिय आन्दोलन में प्राण फूंक दी, संवाद कोमुदी, मिरात उल अखबार इंडियन मिरर, बन्दे मातरम्, मराठा व् केसरी आदि भारतीय राष्ट्रवाद का दर्पण बन गए. बकिमचन्द्र चटर्जी का आनंद मठ क्रांतिकारियों के लिए गीता बन गया. और बन्दे मातरम् ने भारतीय जनता में राष्ट्रवाद की भावना कूट-कूट कर भर दी.
  • आर्थिक कारण – सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश बिर्टिश काल में गरीबी व् पिछड़ेपन की गर्त में जाने लगा देश का धन इंग्लॅण्ड की और जाने लगा. डी. ई. वाचा के अनुसार बिर्टिश शासन ने देश की आर्थिक व्यवस्था को इस हद तक बिगाड़ दिया की चार करोड़ भारतीय दिन में एक बार खाना खाकर संतुष्ट होते थे.
  • इल्बर्ट बिल – 1883 में लार्ड रिपन के शासनकाल में लाया गया इसके द्वारा यूरोपियों के ऊपर मुकदमा की सुनवाई का धिकार भारतीय मजिस्ट्रेटो से छीन लिया गया. इनमें राष्ट्रिय चेतना के विकास में योगदान दिया.

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