India’s Constitution in Hindi – History, Creator, Properties
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश के सम्मुख सबसे महत्वपूर्ण कार्य संविधान की रचना करना था ताकि उसके माध्यम से उन लोकहितकारी उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके, जिनके प्राप्ति के लिए भारतवासियों ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था. इस कार्य को पूरा करने के लिए केबिनेट योजना के अनुसार नवम्बर, 1946 को संविधान सभा के लिए सदस्यों का चुनाव किया गया. संविधान सभा की अवधारणा वर्तमान युग की अत्यंत क्रांतिकारी देन है. इसके कारण व्यक्ति व् राज्य के संबंधो को नई दिशा मिली है और प्रजातान्त्रिक मूल्यों की प्रस्थापना संभव हुई है.
सत्तरहवीं व् अठारहवीं शताब्दियों में होने वाली लोकतान्त्रिक क्रांतियों ने यह विचार प्रतिपादित किया की देश के मौलिक कानून अर्थात वे कानून जिसके माध्यम से देश का शासन चलाया जाएगा और जिनके अंतर्गत विधान सभाएं कानून बनाएंगी, को देश के नागरिकों को अपनी एक निर्वाचित प्रतीधि सभा के माध्यम से निर्मित करना चाहिए| यही प्रतिनिधि सभा जो देश के संविधान अर्थात मौलिक कानून (Fundamental Low) का निर्माण करने के लिए गठित की जाती है, संविधान सभा कहलाती है. संविधान की पूर्ति करने तथा उनकी स्वतंत्रता की रक्षा करने के महान आदर्शो की पूर्ति करती है.
संविधान सभा के कुल 296 सदस्य थे जिनमे से 211 सदस्य कांग्रेस दल के थे तथा 73 सदस्य मुस्लिम लीग के थे. संविधान सभा के मुख्य सदस्यों के नाम थे-डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरु, मौलाना अबुल कलाम आजाद, के. एम्. मुंशी, बलदेव सिंह, डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा, फिरोज खान, सरदार वल्लभ भाई पटेल, गोविन्द वल्लभ पंत, खान अब्दुल गफ्फार खान, आल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, हृदय नाथ कुजंरू, के.टी.शाह, आचार्य कृपलानी, डॉ. बी.आर.आंबेडकर, डॉ. राधा कृष्णन, लियाकत अली खान, नजीमुद्दीन आदि.
हमारे संविधान के निर्माण में ऊपर वर्णित दिवंगत व्यक्तियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 9 दिसम्बर, 1946 को हुई संविधान सभा की पहली बैठक के समकक्ष कई प्रकार की चुनौतियां थी जिनमें सबसे महत्वपूर्ण वह सीमाएं थी जो कैबिनेट योजना द्वारा लगाईं गई थी. मुस्लिम लीग का संविधान सभा में शामिल न होना भी एक समस्या थी. मुस्लिम लीग पाकिस्तान व् हिन्दुस्तान रूप दो राज्यों के लिए दो अलग संविधान सभा की मांग कर रहा था. इस सभी समस्याओं से झुझते हुए संविधान सभा अपना कार्य कर रही थी. इसी बीच घटनाओं के घटनाक्रम में कुछ तेज बदलाव आए व् 20 फरवरी, 1947 को बिर्टिश सरकार ने बिर्टिश भारत भारतीय जनता को हर हालत में जून 1948 तक सौंपने का निश्चय घोषित कर डाला.
मार्च, 1947 में लार्ड माउंटबेटन भारत के गवर्नर-जनरल बने. उन्होंने लम्बा विचार-विमर्श करके यह निष्कर्ष निकाला की कैबिनेट मिशन योजना की सफलता संभव नहीं है. भारत की गुत्थी के दो समाधान है| पहला, यह की भारत का विभाजन कर दिया जाए और दूसरा, यह की अंग्रेज भारत को अराजक स्थिति में छोड़कर चले जाएं और यहाँ गृह-युद्ध हो जाए. लार्ड माउंटबेटन ने विभाजन के पक्ष में कांग्रेस के नेताओं को समझाने का प्रयास किया और वह अन्तत: सफल हो गए और बाद में गांधीजी ने भी अपनी स्वीकृति विभाजन के पक्ष में देदी.
लार्ड माउंटबेटन ने बिर्टिश सरकार से स्वीकृति लेकर 3 जून, 1947 को अपनी योजना प्रस्तुत कर दी, जिसे कांग्रेस व् लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया. इस योजना की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थी-
- भारत का दो भागो-भारत व् पकिस्तान में विभाजन कर दिया जाएगा.
- बंगाल व् पंजाब का विभाजन किया जाएगा और इस बात का निर्णय यहाँ की व्यव्स्थापिकाएं करेंगी.
- असम के सिलहट जिले के लोगो को यह निर्णय करना था की वे असम में रहना चाहते है या पूर्वी बंगाल में मिलना चाहते है.
- पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के लोगो को जमानत संग्रह से तय करना थे की वे भारत में रहना चाहते है या पकिस्तान में.
- देशी रियासतों को भारत या पकिस्तान में मिलने अथवा अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाए रखने का अधिकार दिया गया.
- दोनों भावी राज्यों को राष्ट्र-मंडल में रहने या न रहने की स्वतंत्रता दे दी गई.
दोनों देशो की स्वतंत्रता की थी 15 अगस्त निश्चित कर दी गई.
भारतीय राजनीति और संविधान सामान्य ज्ञान प्रश्न व उत्तर
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