Ahilyabai Holkar Biography in Hindi

Biography on Ahilyabai Holkar: अहिल्याबाई होल्कर को कौन नहीं जानता स्वतंत्र भारत में अहिल्याबाई होल्कर का नाम अविस्मरणीय है इनके बारे में अध्ययन सामग्री अलग-अलग राज्यों की पाठ्य पुस्तकों में मौजूद है.

Ahilyabai Holkar Biography and General Knowledge in Hindi

अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के एक शहर अहमदनगर के जामखेड ग्राम चौड़ी में हुआ था तथा इनका पूरा नाम अहिल्याबाई खंडे राव होलकर है इनका विवाह 10 से 12 वर्ष की आयु में खंडेराव होलकर के साथ कर दिया गया तथा इनका विवाहित जीवन ज्यादा दिन तक सुखमय ना रह सका 29 वर्ष की सामान्य सी आयु में यह विधवा हो गई तथा इनके पति स्वाभाविक रूप से चंचल और उग्र थे परंतु उन्होंने सब कुछ चाहा परंतु कहते हैं ना कि जब विधाता दुख देता है तो चारों खाने चित हो जाते हैं ऐसा ही कुछ इनके साथ हुआ जब यह अपनी उम्र के 42 वे 43 वें पड़ाव में थी तभी इनके पुत्र मालेगांव का देहांत हो गया इसी तरीके से ठीक 4 वर्ष बाद इनके दामाद यशवंतराव खडसे भी ना रहे और इसी के गम में इनकी बेटी मुक्ताबाई ने भी अपने प्राण अपने पति के साथ सती होकर त्याग दिए.

ठीक इसी तरह से इन्होंने अपने जीवन में एक से बढ़कर एक दुखों का सामना किया और अपने जीवन के सभी पड़ावो को हंसते-हंसते पार किया इन्होंने अपनी प्रजा के हित में अनेक हितकारी कार्य किए जैसे कई प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में मंदिर बनवाए घाट बनवाए कुंवर बावरियों का निर्माण करवाया मार्ग का नव निर्माण करवाया और सुधर वाया लोगों को तरह-तरह के प्रबंध और पैसों के लिए भी विभिन्न प्रकार के इंतजाम करवाए इसके अलावा भी इन्होंने और बहुत से समाज सेवी एवं सराहनीय कार्य किए इनका यह कार्य अपने राज्य तक ही सीमित नहीं रहा अब तू यह संपूर्ण भारत वर्ष में हुआ और अहिल्याबाई होल्कर ने अपने नाम की एक अविस्मरणीय कीर्ति विश्व भर में स्थापित की.

इनके ऊपर बच्चों के समान पूरे राज्य का भार और उसके ऊपर भी सारे अपने सगे संबंधी और परिजनों के छोड़ जाने का एक ऐसा दुख रूपी सागर जहां से निकल पाना मुश्किल नहीं नामुमकिन सा था इन सभी कारणों से टूटा अहिल्याबाई का ह्रदय और शरीर अब अत्यधिक जिम्मेदारियां ना उठा सका और इन्होंने 13 अगस्त सन 1795 को अपनी अंतिम सांस ली और हम सब को अलविदा कहा इन के देहांत के बाद महाराजा तुकोजी राव ने राज्य की संपूर्ण शासन व्यवस्था की बागडोर अपने हाथों में लिया और रात को संभाला.

इस प्रकार महारानी ने अपने अभूतपूर्व साहस कौशल बल पराक्रम बुद्धि सहानुभूति और सेवा भाव के चलते संपूर्ण विश्व भर में अपने नाम की एक अनूठी छाप छोड़ी जो छाप आज भी है भारत सरकार द्वारा एवं राज्य सरकार द्वारा इनके द्वारा किए गए सराहनीय कार्यों के लिए तथा इनकी याद हमेशा तरोताजा रखने के लिए जगह-जगह इनके प्रतिमाएं स्थापित की गई है और विभिन्न राज्यों के भिन्न-भिन्न पाठ्य पुस्तकों में इनके बारे में पढ़ाया जाता है ऐसी महान वीरांगना को हम हृदय से श्रद्धांजलि देते हैं और उनके चरणों में प्रणाम करते हैं.

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