Indus Valley Civilization: सिंधु घाटी सभ्यता परिचय, इतिहास, महत्वपूर्ण तथ्य, कला एवं संस्कृति
- Gk Section
- 0
- Posted on
सिंधु घाटी सभ्यता परिचय (What is Indus Valley Civilization in Hindi?)
भारतीय संस्कृति विश्व के प्राचीनतम महान संस्कृतियों में से एक है। हमारी वैदिक रचनाओं के आधार पर हम प्राचीन इतिहास को बड़ी गौरवता से विश्व के सामने प्रदर्शित करते हैं, लेकिन हमारी वैदिक संस्कृति से भी पहले हमारी भारत भूमि पर एक विकसित सभ्यता हुआ करती थी जो अपने समय काल की विश्व की सबसे उन्नत और विस्तृत सभ्यता थी जो भारतीय उपमहाद्वीप पर आर्यों के आगमन से पहले एक विकसित समाज का निर्माण कर चुकी थी। जिनके नगर विश्व के सबसे उत्कृष्ट रचनावद्ध तरीके से बनाए गए नगर थे। विश्व की सभी ज्ञात प्राचीन सभ्यताएं नदियों के किनारे खड़ी हुई और विकसित हुई जैसे कि मिस्र की सभ्यता नील नदी के किनारे पाई गई, मेसोपोटामिया की सभ्यता दजला और फरात नदी के किनारे पाई गई और चीन की सभ्यता येलो नदी के किनारे पाई गई। वैसे ही भारतीय सभ्यता सिंधु नदी के किनारे पाई गई। इसलिए इसे सिंधु सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास (history of Indus Valley Civilization
सन 1826 में सर चार्ल्स मिशल नाम के अंग्रेज भारत के उत्तर पश्चिमी पंजाब क्षेत्र का दौरा कर रहे थे। जो कि आज के पाकिस्तान का पंजाब प्रान्त है। उन्होंने वहां के हड़प्पा क्षेत्र में जमीन के नीचे दबे पुरातन अवशेषों का निरीक्षण किया और सन 1842 में लेख लिखकर सर्वप्रथम दुनिया के सामने इस बात को प्रदर्शित किया। उसके बाद सन 1853 से 1856 के बीच कराची और लाहौर के दरमियान जब रेलवे लाइन का निर्माण कार्य शुरू हुआ तब रेल्वे इंजीनियर्स वर्टन बंधु जिनका नाम जेम्स और विलियम था। उन्हें हड़प्पा के मजबूत ईटों का पता चला अतिप्राचीन खंडहरों के अवशेष के रूप में प्राप्त इन ईटों का प्रयोग उन्होंने रेलवे की पटरी के निर्माण कार्य में किया। उसके पश्चात सन 1856 में अलेक्जेंडर कलिंगहम नामक एक अंग्रेज अधिकारी ने हड़प्पा का निरीक्षण करके मानचित्र बनाया। यह वही अंग्रेज अधिकारी थे, जिन्होंने सन 1861 में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की।
सन 1921 में इसी भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख “सर जॉन मार्शल” के नेतृत्व में पहली बार हड़प्पा का आधिकारिक तौर पर उत्खनन प्रारम्भ हुआ। भारतीय शोधकर्ता “दयाराम सहिनी” ने सन 1921 में हड़प्पा का उत्खनन कार्य शुरू किया और सन 1922 में “राखल दास बैनर्जी” ने सिंध प्रांत के मोहन जोदड़ो में उत्खनन कार्य शुरू किया और दुनिया के सामने हड़प्पा के रूप में पहली बार सिंधु सभ्यता का रूप उजागर हुआ। इसीलिए आज इस पूरी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप आज तक इस खोज ने हमे इसके 1500 नगरों से परिचित करवाया है। जिनमे से ज्यादातर नगर भारत में पाए गए हैं। जिनकी संख्या लगभग 925 तक है।
पाकिस्तान में पाए गए नगरों की संख्या 575 के आस – पास है और अफगानिस्तान में दो नगरों की खोज हो चुकी है। अब तक के उत्खनन के आधार पर इसकी सीमा का निर्धारण अगर हम करते हैं तो हमें सबसे उत्तर में जम्मू कश्मीर से प्राप्त होता है मांडा नगर, सबसे दक्षिण में महाराष्ट्र में दायमा बाद, पूर्व में उत्तर प्रदेश का आलमगीरपुर और पश्चिम में बलूचिस्तान का सुतकागेंडोर। कुल 13 लाख किलोमीटर के क्षेत्र में यह सभ्यता फैली हुई थी। इसका उत्तर दक्षिण विस्तार 1400 किलोमीटर तक है और पूर्व पश्चिम विस्तार 1600 किलोमीटर है। सर जॉन ने इसका कार्य काल 3250 ईसापूर्व से लेकर 2750 ईसापूर्व तक है। वहीं C14 प्रणाली के आधार पर सर डीपी अग्रवाल ने इसका कार्य कल 2300 ईसापूर्व से लेकर 1750 ईसापूर्व मन है।
सिंधु घाटी सभ्यता महत्वपूर्ण तथ्य (Indus Valley Civilization important facts in Hindi
इस सभ्यता के जैसा नगर नियोजन विश्व में किसी भी सभ्यता में नहीं पाई गई है। इन लोगों को लिपि का ज्ञान था। चित्रात्मक अक्षरों के सहारे इन्होंने अपने विचारों को लिपिबद्ध करना सीख लिया था। इन्होंने तांबा और टिन को मिश्रित करके कांस्य धातु के निर्माण की कला सीख ली थी। उत्खनन में मिले अवशेषों के आधार पर यह पता चला है। की ये लोग मापतौल करना जानते थे, जिन्हें मिट्टी से बर्तन, औजार और खिलौने बनाना आता था। इन्हें गणित का ज्ञान भी अवश्य होगा तभी इन्होंने रचनाबद्ध और विशाल भवन बनबाये थे। इनकी ईटें प्रमाणबद्ध थीं।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मिला मोहनजोदड़ो नगर इस सभ्यता का सबसे बड़ा और सुनियोजित रचनाबद्ध नगर है। इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता की राजधानी के रूप में भी देखा जाता है। भारत के हरयाणा राज्य में खोजा गया राखीगढ़ी नगर भारत में खोजा गया सबसे बड़ा नगर है। भारत के गुजरात राज्य में सबसे ज्यादा नगरों की खोज हुई है। लोथल नगरी बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ से हमें विदेशी व्यापार के प्रमाण भी प्राप्त होते हैं। ये सभी नगर विशेषतः दो हिस्सों में बंटे दिखाई पड़ते हैं। जिसमें ऊपरी हिस्सा समाज के धनी और पुरोहितों के रहने की जगह हो सकती है। इसे दुर्ग भी कहा जाता है। साथ ही दूसरी निचली जगह में किसान, मजदूर तथा जनसामान्य के रहने की जगह पाई गई है। ऊपर के हिस्से में ज्यादातर बड़े और पक्के भवन और सार्वजनिक वास्तु पाए गए हैं। जिन्हें ऊँची तटबन्धी से संरक्षित किया गया है। इसकी तुलना में निचले हिस्से में छोटे और कच्ची ईटों के मकान दिखाई पड़ते हैं जो तटबंधी से संरक्षित भी नहीं है। इन सभी नगरों में एकमात्र नगर ऐसा पाया गया है जो दो के बजाय तीन हिस्सों में बांटा गया है। इसका नाम धौलावीर है। जो गुजरात राज्य में स्थित है। इसमें मिला तीसरा हिस्सा मध्यमा के नाम से जाना जाता है। यह व्यापारी वर्ग के लिए बनाया गया क्षेत्र मालूम पड़ता है।
सिंधु घाटी सभ्यता कला एवं संस्कृति (Indus Valley Civilization art and culture in Hindi
सिंधु सभ्यता के अधिकतर स्थानों पर कांसे की ढलाई का कार्य अधिक होता था। लोथल में पाए गे तांबे का कुत्ता और पक्षी एवं कालीबंगा में खोजी गई साँड़ की कांस्य मूर्ति को हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिली ताँबे और कांसे की मानव मूर्तियों से किस प्रकार भी से की मानव मूर्तियों से किसी प्रकार भी कमतर नहीं कहा जा सकता।हड़प्पा सभ्यता के नगरीय रास्ते विशेष रूप से प्रशंसनीय हैं क्योंकि वे नियोजनबद्ध तरीके से एक दूसरे को समकोण में काटते हैं। रास्तों की इस पद्धति को ग्रीड पद्धति कहा जाता है। सभी घरों के रास्ते मुख्य मार्ग के स्थान पर गलियों में खुलते हैं। हर घर में एक कुआं, स्वच्छता ग्रह और जलनिकास नालियां मिलती हैं। जो मुख्य नाली से जुड़ कर कबरब पानी को शहर से बाहर ले जातीं हैं। धौलावीरा नगर में लकड़ी की नालियां पाई गई हैं। यह साध्यता अपने सामूहिक स्नानगृह, सभागृह, विशाल अन्न भण्डार और गोदामों के लिए प्रशंसनीय मानी जाती है। इनके खान पान में गेहूं, जौ, तरबूज, खरबूजा, खजूर, राई, सरसों, तिल और कई जगह पर चंबल आदि के प्रमाण पाए गए हैं। सजने के लिए यह लोग सोना, चांदी, हाथीदाँत, शंख, सीपी आदि से बने आभूषणों का प्रयोग करते थे। इनके वस्त्र सूती, ऊनी और कढ़ाईदार पाए गए हैं।