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Power and Functions of Council of MInisters of India in Hindi

संसदीय प्रणाली में कैबिनेट एक ऐसी धुरी है जिसके चरों और समस्त शासन तंत्र घूमता है| मत्री-परिषद् एक विस्त्रत सभा है जिसमें विभिन्न श्रेणियों के मंत्री होते है तथा जिनकी सदस्य संख्या लगभग 50 से 60 के बीच होती है अत:: इसकी बैठके आवश्यकतानुसार जल्दी-जल्दी बुलाना और उन बैठको में कोई निर्णय ले पाना कठिन होता है| इसी कारन मंत्री-परिषद् को अंतरंग समिति (केबिनेट) के बैठके नित्य होती रहती है और यही अन्तरंग सभा मंत्री-परिषद् के निर्णयों के रूप में सभी कार्यों का सम्पादन करती है | निचे संक्षेप में मंत्री-परिषद् के कार्यों का वर्णन किया गया है-

मंत्री-परिषद् के कार्य व् शक्तियां – Power and Functions of Council of Ministers

निति-निर्धारित करना – मंत्री-परिषद् का सबसे महत्वपुर कार्य राज्य की आंतरिक एवं विदेशी निति का निर्धारण करना है| समय-समय पर उठने वाले अंतराष्ट्रीय प्रश्नों के सम्बन्ध में किसी निति का अनुसरण किया जाए, स्थायी रूप से देश की आंतरिक व् ब्राह्रा निति क्या होगी आदि के संबंधमे मंत्री-परिषद् ही निर्णय लेती है| संसंद में राष्ट्रपति द्वारा किए जाने वाले अभीभाषण को वाही तैयार कराती है| कर्मचारियों को बोनस देने का प्रश्न, सूखे या बाड़ की स्थिति का प्रश्, विदेशी व्यापर, सुरक्षा व्यवस्था आदि सभी प्रश्नों पर विचार करती है| यघपि बैठक में मंत्री स्वतंत्रतापूर्वक अपना मत प्रकट करने है किन्तु बहुमत में लिया गया निर्णय सरकार का निर्णय होता है|

देश के प्रशासन का अधिकार– मंत्री-परिषद् राज्य की कार्यकारिणी की रूप में समस्त शासन शक्ति का स्वयं उपभोग करती है| शसन के कार्यो को अनेक विभागों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक गृह, प्रतिरखा, रेलवे आदि विभाग को अलग-अलग मंत्री के अधीन कर दिया जाता है कई बार एक मंत्री के पास एक से अधिक विभाग भी होते है और कार्य की अधिकता को देखकर एक विभाग को भी कई भागो में विभाजित करके कई मंत्रियों में बांग दिया जाता है| प्रत्येक विभाग के कार्य को सुचारू रूप से चलने के लिए उच्च स्थायी सरकारी कर्मचारी होते है ये कर्मचारी मंत्री द्वारा निर्धारित निति को पूर्ण करने के लिए प्रयत्नशील रहते है| मंत्री अपने विभाग की देख्भाग करता है और उसके योग्य प्रशासन के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होता है|

आर्थिक निति का निर्धारण – मंत्री-परिषद् ही देश की आर्थिक निति-निर्धारित करती है राज्य की आय और उसके व्यय में ताल-मेल बैठती है| आगामी वर्ष में कौन-कौन से कर लगाने या समाप्त करने है, इसका निश्चय भी यही परिषद् करती है| इस प्रकार देश की आय का अनुमान लगाकर उसके व्यय के सम्बन्ध में योजना तैयार होती है| विभिन्न मंत्री अपने विभागों की वित्तीय आवश्यकताओं को वित्त-मत्री के पास भेजते है जिस पर मंत्री-परिषद् विचार करती है और इसी आधार पर देश का बजट तैयार होता है|

कानून पारित कराने की शक्ति – साधारणत: विधेयक मंत्री-परिषद् द्वारा ही प्रस्तावित होते है| संसद में जिस दल का बहुमत होता है उसी दल की मंत्री-परिषद् होती है| ऐसी अवस्था होते है| संसद में जिस दल का बहुमत होता है उसी दल की मंत्री-परिषद् होती है| ऐसी आवस्था में जो बिल संसद में मंत्री-परिषद् द्वारा रखा जाता है वह पारित हो जाता है| किसी विरोधी दल सदस्य द्वारा रखा गया कोई भी ऐसा बिल जिसका मंत्री-परिषद् समर्थन न करे, पारित नहीं हो सकता| वैसे भी देश की सम्पूर्ण कार्यपालिका शक्ति मंत्री-परिषद् में निहित होने के कारन इसे अनेक कार्यों का सम्पादन करना होता है और इस कार्यों से सम्बंधित इसे अनेक कानून बनवाने विभिन्न विभागों के लिए कानून पारित करवा लेती है|

लोकसभा को भंग कराने की शक्ति – यघपि लोकसभा को भंग करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है किन्तु व्यवहार में इस पर मंत्री-परिषद् का ही अधिकार है| यदि मंत्री-परिषद् उचित समझती है तो यह प्रधानमंत्री के माध्यम से राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर सकती है जसी माने के लिए राष्ट्रपति बाध्य है, उधारानार्थ , चौधरी चरणसिंह के मंत्री-मंडल ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रपति से आग्रह किया था की वह छठी लोकसभा को भंग कर दे| इस सिभारिश को मानकर राष्ट्रपति श्री नीलम संजीवा रेड्डी ने लोकसभा को भंग किया तहत नए चुनाव कराने का आदेश दिया था|

आपातकालीन स्थिति का निर्णय – 44वें संविधान संशोधन अधिनियम ने संविधान में संशोधन करके मंत्री-परिषद् का यह अधिकार सोंपा है की जब वह अपनी बैठक में आपातकालीन स्थिति होने के आशय का प्रस्ताव पारित करके लिखित रूप में राष्ट्रपति की सेवा में भेजती हैतब ही राष्ट्रपति देश में आपातकाल की घोषणा करेगा| इस संशोधन से पूर्व प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा यह घोषणा कर दी जाती थी और यह विशवास किया जाता है की प्रधानमंत्री ने अपनी परिषद् से इस सम्बन्ध में सलाह ले ली है| 1975 में लगने वाली आंतरिक आपातकाल की घोषणा के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति को आंतरिक आपातकाल की घोषणा की सिफारिश की थी | 44वें संशोधन ने आपातकाल की घोषणा की पूरी जिम्मेदारी मंत्री-मंडल पर दाल दी|   

उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है – अनेक उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है जैसे राज्यपालों, उच्च व् उच्चतम न्यायलय के न्यायाधीश , सेनापति आदि| इस अधिकार का उपयोग मंत्री-परिषद् ही करती है| वह राष्ट्रपति के नाम से इन सब नियुक्तियों के सम्बन्ध में निर्णय लेती है|

विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करने की शक्ति – दुसरे देशो के साथ सम्बन्ध स्थापित करना तथा राजनैतिक व् व्यापारिक संधियाँ करने आदि मंत्री-परिषद् के कार्य है| युद्ध की घोषणा करना तथा शान्ति स्थापित करने के लिए संधियाँ करने आदि के समबन्ध में भी परिषद् ही निर्णय लेती है| इन शक्तियों का वर्णन भी राष्ट्रपति के नाम से किया गया है किन्तु राष्ट्रपति स्व-विवेक से उनका उपयोग न करके मंत्री-परिषद् के परामर्श से संपादित करता है|

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