Biography on Yashpal: Here you learn about the Hindi-language author of India Yashpal in Hindi by their biography (Jivni). In this article, we mentioned all about Yashpal ji, and all information about Yashpal is taken from different web and blogs.
Yashpal Biography in Hindi
वर्ष 1970 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित यशपाल जी का जन्म 3 दिसम्बर 1903 को फ़िरोजपुर छावनी, पंजाब, भारत में एक खत्री परिवार में हुआ था.
यशपाल अपने विधार्थी जीवन में क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े थे और ये एक हिन्दी साहित्य के प्रेमचंदोत्तर युगीन कथाकार हैं.
यशपाल जी की माता का नाम श्रीमती प्रेमदेवी था जोकि वह एक स्कुल में अध्यापिका थी और यशपाल जी के पिता का नाम हीरालाल था जो एक साधारण कारोबारी ब्यक्ति थे यशपाल जी के पिता की एक छोटी सी दूकान थी और लोग उन्हें लाला कहकर बुलाते थे दूकान द्वारा जोड़े गए पैसो को वे इकठ्ठा कर हाथ उधारु के रूप में सूद पर उठाया करते थे.
यशपाल ने अपने बचपन में अंग्रेजो के आतंक और दुर्व्यवहार की कई बाते सुनी थी जिसमे हिन्दुस्तानी धुप हो या बरसात में अंग्रेजो के सामने छाता लगाए भी गुजर नहीं सकते थे. अंग्रेजो के लिए पहाड़ो व् शहरों से गुजरने के लिए पक्की सड़के थी लेकिन हिन्दुस्तानी इन सड़को के निचे बनी कच्ची सड़को पर ही चल सकते थे. अंग्रेजो के इस तरह के दुर्व्यवहार के बारे में यशपाल ने सिर्फ सूना था देखा नहीं था क्यूंकि उनके समय तक अंग्रेजो की प्रभुता को ठुकराने वाले कई क्रांतिकारी आंदोलनों की शुरुआत जगह जगह होने लगी थी. परन्तु फिर भी यशपाल ने अपने बचपन में जोभी देखा वह वह उनके मन में अंग्रेजो के खिलाफ घृणा करने के लिए काफी था उन्होंने लिखा है “मैंने अंग्रेज़ों को सड़क पर सर्व साधारण जनता से सलामी लेते देखा है। हिन्दुस्तानियों को उनके सामने गिड़गिड़ाते देखा है, इससे अपना अपमान अनुमान किया है और उसके प्रति विरोध अनुभव किया।.
अंग्रेजो और बिर्टिश साम्राज्यवाद के प्रति घृणा का उल्लेख यशपाल ने अपने बचपन में हुई दो घटनाओं के साथ किया था है जिसमे वह अपने चार-पांच वर्ष की आयु में अपने किसी कारखाने के पास जहा उनके कोई संबंधी एक मैनेजर के रूप में कार्य करते थे और उस कारखाने स्टेशन के पास अंग्रेजो के दो-चार बंगले थे इनमे से किसी एक बंगले में मुर्ग़ियाँ पली थी जो आस पास सड़को पर घुमती थी एक समय यशपाल उन मुर्गियो के साथ छेड़खानी करने लगे और बंगले में रह रही एक मेम साहिबा ने इनकी इस हरकत पर उनकी डांट लगाईं और शायद गधा’ या ‘उल्लू’ जैसी गाली दी परन्तु यशपाल जी ने भी उस मेम का जवाब गाली से ही दिया. इस घटना से मेम बहुत नाराज हुई जिससे की उसने यशपाल की शिकायत उनकी माँ से करदी माँ ने इसपर यशपाल को छड़ी से खूब पिता जिसमे वह अपने उल्लेख में लिखते है की ‘मेरी माँ ने एक छड़ी लेकर मुझे ख़ूब पीटा मैं ज़मीन पर लोट-पोट गया परंतु पिटाई जारी रही। इस घटना के परिणाम से मेरे मन में अंग्रेज़ों के प्रति कैसी भावना उत्पन्न हुई होगी, यह भाँप लेना कठिन नहीं है।’
यशपाल की माता उन्हें स्वामी दयानंद जी के आदर्शो का एक तेजस्वी प्रचारक बनाना चाहती थीं, इसी उद्देश्य से यशपाल जी की आरंभिक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई. वर्ष 1921 में यशपाल जी की आयु मात्र 18 वर्ष की थी और वे देश-सेवा और राष्ट्रभक्ति के लिए कांग्रेस के साथ वे प्रचार-अभियान में भी भाग लेते थे.
यशपाल जी की मैट्रिक परीक्षा के बाद वे लाहौर आने पर नेशनल कॉलेज में भगतसिंह, सुखदेव और भगवतीचरण बोहरा के संपर्क में आए, नौजवान भारत सभा में की गतिविधियों में उनकी व्यापक और सक्रिय हिस्सेदारी रही भगवतीचरण और भगत सिंह नौजवान भारत सभा के मुख्य सूत्राधार थे.
यशपाल के उपन्यास में दिव्या, देशद्रोही, झूठा सच, दादा कामरेड, अमिता, मनुष्य के रूप और तेरी मेरी उसकी बात है व् कहानी संग्रह में पिंजरे की उड़ान 1939, फूलो का कुर्ता 1949, धर्मयुद्ध 1950, सच बोलने की भूल 1962, भस्मावृत चिंगारी 1946, उत्तनी की मां 1955, चित्र का शीर्षक 1951, तुमने क्यों कहा था मै सुंदर हूं 1954, ज्ञान दान 1943, वो दुनिया 1948, खच्चर और आदमी 1965, भूख के तीन दिन 1968, उत्तराधिकारी 1951, अभिशिप्त 1943 है इसके अलवा उनके व्यंग्य संग्रह में चक्कर क्लब और कुत्ते की पूंछ है.
यशपाल जी को वर्ष 1955 में देव पुरस्कार’ 1970 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार 1971 में मंगला प्रसाद पारितोषिक इनके अलावा उनके ‘पद्म भूषण’ और साहित्य अकादमी जैसे बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. 26 दिसंबर, 1976 में यशपाल जी का निधन हो गया.
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