विश्व पर्यावास दिवस – World Habitat Day 2025 in Hindi
- विवेक कुमार
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World Habitat Day 2025 in Hindi – दुनियाभर में, अक्टूबर महीने के पहले सोमवार को ‘विश्व पर्यावास दिवस’ (World Habitat Day) मनाया जाता है। इसे ‘विश्व आवास दिवस’ भी कहा जाता है। इस आर्टिकल में हम जानेंगे की विश्व पर्यावास दिवस’ (World Habitat Day) कब और क्यों मनाया जाता है? उद्देश्य, इतिहास, महत्व, थीम
World Habitat Day 2025 – जाने कब और क्यों विश्व पर्यावास दिवस मनाया जाता है?
दुनियाभर में, अक्टूबर महीने के पहले सोमवार को ‘विश्व पर्यावास दिवस’ मनाया जाता है। इसे ‘विश्व आवास दिवस’ भी कहा जाता है। इस दिन का उद्देश्य राज्यों, कस्बों, और शहरों की स्थिति को प्रतिबिंबित करना है और सभी के लिए पर्याप्त आश्रय या आवास के मूल अधिकार को बढ़ावा देना है। इस दिन का उद्देश्य वर्तमान पीढ़ियों को यह याद दिलाना है कि वे भविष्य की पीढ़ियों के पर्यावास (Habitat) के लिए ज़िम्मेदार हैं.
World Habitat Day 2023 Theme:- विश्व पर्यावास दिवस की थीम
- Resilient Urban Economies: Cities as Drivers of Growth and Recovery
- लचीली शहरी अर्थव्यवस्थाएँ: विकास और पुनर्प्राप्ति के चालक के रूप में शहर
Objective of World Habitat Day – विश्व पर्यावास दिवस का उद्देश्य
इस दिन को मनाने का प्रमुख उद्देश्य मानव अधिकारों की महत्वपूर्ण पहचान करना और उन्हें सुरक्षित और पर्याप्त आवास प्रदान करना है। साथ ही, कस्बों और शहरों की स्थिति में सुधार करना भी इस दिन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। गरीबी को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। शहरों और मानव बस्तियों में बढ़ती असमानता को कम करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
History of World Habitat Day – विश्व पर्यावास दिवस का इतिहास
1985 में, संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष अक्टूबर माह के पहले सोमवार को ‘विश्व पर्यावास दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी, और पहली बार वर्ष 1986 में इसे मनाया गया। इसकी मुख्य थीम ‘शेल्टर इज़ माई राइट’ (Shelter is My Right) थी।
Significance of World Habitat Day – विश्व पर्यावास दिवस का महत्व
- एक तरफ जहां कुछ लोग बड़े-बड़े और आरामदायक घरों में रहते हैं, वहीं दूसरी ओर कई लोगों के पास सुरक्षित आवास नहीं है।
- एक सर्वे के अनुसार, पूरी दुनिया में लगभग 10 करोड़ लोग बेघर हैं, जबकि 1.6 अरब लोग बेहद घटिया आवासों में बसे हैं।
- विश्वभर में झोपड़पट्टियों में रहने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है।