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11 जुलाई: विश्व जनसंख्या दिवस

हमने यहाँ पर 11 जुलाई को मनाये जाने वाले विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) के बारे में जानकारी प्रकाशित की है जो की अपने सामान्य ज्ञान और सरकारी नौकरी की तैयारी के सहायक होगी.

विश्व जनसंख्या दिवस – World Population Day

प्रस्तावना – विश्व जनसंख्या दिवस एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान है जिसे पूरे मानव समुदाय ने मिलकर बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या का हल करने के लिए प्रारम्भ किया।

संयुक्त राष्ट्र संघ की गवर्निंग काउंसिल के फैसले के अनुसार 1990 के विकास कार्यक्रम में विश्व स्तर पर सारे लोगों की सिफारिश के द्वारा यह तय किया गया कि हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रुप में मनाया जाएगा ताकि आम जनता में जागरूकता को बढ़ाया जा सके।जिससेसामाजिक मुद्दों से निपटने के लिए वास्तविक समाधाननों का पता लगाया जा सके। विश्व जनसंख्या दिवस को मनाने का उद्देश्य जनसंख्या संबंधी समस्याओं पर स्पष्टता जागृत करना है। इस दिन संसार भर में विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कई मुख्य विषयों पर चर्चा करते हैं जैसे कि परिवारों में सदस्यों की बढ़ती संख्या और लैंगिक भेदभाव, महत्वपूर्ण है यह देखा गया है कि 1987 में 11 जुलाई को दुनिया की आबादी 5 बिलियन तक पहुंच गई। भारत, चीन के बाद दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में खड़ा है लेकिन यहाँ 2050 तक 278 बिलियन लोगों के होने की उम्मीद है और भारत 8 वर्षों में चीन से आगे निकल जाएगा। 2010 के बाद से 27 देशों में जनसंख्या में 1% की कमी दर्ज की है लेकिन भारत की जनसंख्या बढ़ रही है।

जनगणना के अनुसार जनसंख्या तो बढ़ी ही है लेकिन इतिहास की दृष्टि से यह कोई ठोस विचार नहीं कि, क्यों, कैसे, किस तरह?
आइए इस पर थोड़ा विचार करते हैं। अगर थोड़ी पीछे जाकर इतिहास पर ध्यान लगाएं तो यह सवाल उठता है कि जनगणना होनी प्रारंभ कब से हुई? हम सही- सही कैसे जानेंगे कि इस ग्रह पर कितने लोग थे। इतिहास की दृष्टि से तो जनसंख्या की वृद्धि का विचार सीमित सा लगता है लेकिन शास्त्रों से हमें यह पता चलता है कि उस समय जनसंख्या आज से कई ज्यादा थी क्योंकि उस समय लोग प्राकृति से तालमेल से चलते थे जिससे प्रकृति भी उनकी प्रचुर मात्रा में मदद करती थी। आज की समय की बात करें तो पिछले दिनों से जनसंख्या तो बढ़ रही है परंतु इस रूप में बढ़ रही है कि वह पर्यावरण के लिए खतरा हो रही है। हम लोग शहरों में रहते हैं, कभी- कभी लोगों की भीड़, भरी हुई ट्रेन, सड़कें सब जगह बस भीड़ होती है। इनसे हमें घुटन सी महसूस होती है लेकिन हम जब दूसरे शहर जाते हैंतो रास्ते में हमें गांव दिखते हैं।वे इतनी भीड़ से भरे नहीं होते बल्कि ज्यादातर जगह चारों ओर दूर-दूर तक खुली और ताजा हवा होती है, जहां खेती की जा सकती है लेकिन वहां पर खेती नहीं होती लोगों की रहने की तो दूर की बात है।हमारी सोशलइकोनामिक व्यवस्था है जो खेती और किसानों को कई बार निरोत्साहित करता है। शहरों की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों का असर ऐसा होता है कि खेती को छोड़कर लोग शहरों में मजदूर बनने को खींचे चले जाते हैं जिससे शहरों में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति शुरू होती है। गांव खाली हो जाते हैं।

पृथ्वी में इतनी क्षमता है कि यह न केवल वर्तमान इससे भी अधिक जनसंख्या को अपने भीतर रख सकती है क्योंकि मुख्य यह नहीं कि लोग कितने हैं बल्कि मायने यह रखता है कि लोग प्रकृति के साथ कैसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे कि कुछ किसान गेहूं, रागी, ज्वार जैसे अन्न की खेती करने के अलावा पैसों के लिए चाय,कॉफीके पौधों को पैदा कर रहे हैं। अगर ध्यान से देखा जाए तो जनसंख्या के बढ़ने से कोई समस्या नहीं बल्कि प्राथमिक समस्या है असमान जीवन शैली क्योंकि ऐसा नहीं कि प्रकृति जीने के साधन नहीं दे रही लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि कैसे उसका उपयोग हम कर रहे हैं। हमारे पुराणों में एक सिद्धांत होता है कि इस ब्रम्हांड के भीतर की प्रत्येक वस्तु भगवान के द्वारा नियंत्रित है, उन्हीं की संपत्ति है, मनुष्य को अपने लिए जो जरूरी है उसका ही उपयोगकरना चाहिए।

हमारी बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ लोगों की चाहत और मांग भी बढ़ती ही जा रही है लेकिन कुछ जगह मांग अधिक होती है लोग कम होते हैं, कुछ जगह ऐसीं होती हैं जहां लोग ज्यादा होते हैं और मांग कम होती है,ऐसीं भी कुछ जगह होती हैं जहां लोग और मांग अधिक होती है लेकिन वहां खाने की चीजों का मिलना कम होता है।

“लिंडन जॉनसन” के अनुसार
भूखी दुनिया को तब तक नहीं खिलाया जा सकता जब तक कि उसके संसाधनों की वृद्धि और उसकी आबादी का विकास संतुलन में ना आ जाए। प्रत्येक पुरुष और महिला और प्रत्येक राष्ट्र को इस महान समस्या के चरणों में विवेक और नीतियों के निर्णय लेने चाहिए।

निष्कर्ष – पर्यावरण को नियंत्रित करने के बजाय हमें अपने पर्यावरण के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए जनसंख्या को नियंत्रित करना चाहिए। लोगों की अपनी मांग से ज्यादा लेने की आदत छूट जाए तो जनसंख्या बढ़नेपर भी कुछ नुकसान नहीं होगा।

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अरुण कुमार
अरुण को दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में कला स्नातक की डिग्री और शिक्षा के सभी क्षेत्रों में कार्य अनुभव है। उन्हें हिंदी शिक्षा क्षेत्र में लेखन का दस वर्षों से अधिक का अनुभव है।
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