बुद्ध का सन्देश उन भारतीयों के लिए बहुत नया और मौलिक था जो ब्रह्मज्ञान की गुत्थियों में डूबे रहते है| बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा, “सभी देशो में जाओ और इस धर्म का प्रचार करो|” इस धर्म से सब जातियां आकर इस तरह मिल जाती है जैसे समुद्र में नदियाँ| उन्होंने सबसे लिए करुणा का, प्रेम का सन्देश दिया क्योंकि “इस संसार में घृणा से नहीं होता, घृणा का अंत प्रेम से होता है|”
अत: “मनुष्य को क्रोध पर दया से और बुराई पर भलाई से काबू पाना चाहिए|” यहाँ सदाचार आत्मानुशासन का आदर्श था| “युद्ध में भले ही कोई हजार आदमियों पर विजय पा ले, पर जो अपने पर विजय पाटा है, सच्चा विजेता वाही होता है| मनुष्य की जाती जन्म से नहीं बल्कि केवल कर्म से तय होती है|”
उन्होंने यह उपदेश न किसी धर्म के समर्थन के आधार पर और न इश्वर या परलोक का हवाला देकर दिया| उन्होंने विवेक, तर्क और अनुभव का सहारा लिया और लोगो से कहा की वे अपने मन के भीतर सत्य की खोज करें|
सत्य की जानकारी का आभाव सब दुखों का कारण है| ईश्वर या परब्रह्म का अस्तित्व है या नहीं, उन्होंने नहीं बताया| वे न उसे स्वीकार करते है न इनकार| जहाँ जानकारी संभव नहीं है वहां हमें निर्णय नहीं देना चाहिए| इसलिए हमने अपने आपको उन्हीं चीजों तक सिमित रखना चाहिए जिन्हें हम देख सकते है और जिनके बारे में हम निश्चित जानकारी हासिल कर सकते है|
बुद्ध की पद्धति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की पद्धति थी और इस बात की जानकारी हैरत में डालने वाली है की अधुनातन विज्ञानों के बारे में उनकी अंतद्रष्टि कितनी गहरी थी|
जीवन में वेदना और दुःख पर बोद्ध धर्म में बहुत बल दिया गया है| बुद्ध ने जिन ‘चार आर्य सत्यों’ का निरूपण किआ है उनका संबंध दुःख का कारन, दुःख के अंत की संभावना और उसे संपत करने के उपाय से है|
दुःख की इस स्थिति के अंत से ‘निर्वाण’ की प्राप्ति होती है| बुद्ध का मार्ग माध्यम मार्ग था| यह अतिशय भोग और अतिशय ताप के बिच का रास्ता है| अपने शारीर को कष्ट देने के औभव के बाद उन्होंने कहा, “जो व्यक्ति अपनी शक्ति खो देता है वाही सही रस्ते पर नहीं बढ़ सकता|”
यह मध्यम मार्ग आर्यों का अष्टांग मार्ग था – सही विशवास, सही आकांक्षाएं, सही वचन, सही आचरण, जीवनयापन का सही ढंग, सही प्रयास, सही विचार और सही आनंद|
बुद्ध ने अपने शिष्यों को वाही बातें बताएँ जो उनके विचार से वे लोग समझ सकते थे और उनके अनुसार आचरण कर सकते थे| कहा जाता है की एक बार उन्होंने अपने हाथ में कुछ सुखी पट्टियां लेकर अपने प्रिय शिष्य आनंद से पुछा की उनके हाथ में जो पट्टियां है, उनके आलावा भी कहीं कोई है या नहीं? आनंद ने उतर दिया-” पतझड़ की पट्टियां सब तरफ गिर रही है और वे इतनी है की उनकी गाणना नहीं की जा सकती|” तब बुद्ध ने कहा- “इसी तरह मैंने तुम्हे मुट्ठी भर सत्य दिया है, किन्तु इसके अलावा कई हजार और सत्य ऐसे है, जिनकी गणना नहीं की जा सकती.