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गौतमी पुत्र शातकर्णी (सातवाहन वंश) के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य

गौतमी पुत्र शातकर्णी सातवाहन वंश का सबसे महान शासक था जिसने न केवल अपने साम्राज्य की खोई प्रतिष्ठा को पुनस्थापित किया अपितु एक विशाल साम्राज्य की भी स्थापना की थी. गौतमी पुत्र शातकर्णी के समय को सातवाहनो का पुनरुद्धार काल कहा गया.

Important facts about of Gautamiputra Satakarni in Hindi

  1. गौतमी पुत्र शातकर्णी का शासन काल 106 से 130 ई. का माना जाता है.
  2. उन्होंने कुल 24 वर्ष तक शासन किया. वह सातवाहन वश के 23वें शासक थे. वह अपने पूर्ववर्ती सातवाहन शासकों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली और प्रतिभाशाली थे.
  3. उनके पिता का नाम शिवस्वाती और माता का नाम गौतमी बलश्री था.
  4. गौतमी पुत्र शातकर्णी ने ही सबसे पहले अपने नाम के साथ माता के नाम का उल्लेख शुरू किया.
  5. गौतमी पुत्र शातकर्णी के समय तथा उसकी विजयों के बारे में हमे उसकी माता गौतमी बलश्री के नासिक शिलालेखो से सम्पूर्ण जानकारी मिलती है. उसके सन्दर्भ में हमे इस लेख से यह जानकारी मिलती है उसने क्षत्रियो को पराजित किया था.
  6. गौतमी पुत्र शातकर्णी के तीन अभिलेख प्राप्त होते है. जिसमें से डॉ नासिक से तथा एक कार्ल से मिला है. नासिक का पहला लेख उसके शासन काल के 18वें तथा दूसरा 24वें वर्ष में तैयार किया गया. कार्ल का लेख भी उसके शासन काल के 18वें वर्ष का ही है. इन अभिलेखों के अलावा गौतमी पुत्र शातकर्णी के सिक्के भी प्राप्त हुए है. जो उनके गौरव की कहानी बताते है.
  7. शातकर्णी प्रथम ही वह शासक है जिसका उल्लेख साँची स्तूप के तोरण में हुआ है जो इस बात को प्रमाणित करता है की उसके समय में मध्य भारत सातवाहनी के अधिकार में था.
  8. शातकर्णी ही ऐसा सातवाहन राजा था जिसको ‘दक्षिणपथ के भगवान् के रूप में जाना जाता है.
  9. नासिक प्रशस्ति के मुताबिक़ गौतमी पुत्र के घोड़े बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर और अरब सागर में पानी पिटे थे.
  10. शातकर्णी महाराज ने शक, यवन तथा पल्लव जैसी विदेशी शक्तियों का विनाश किया. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्ष्हरात वंश के शक राजा नहपान को पराजित करना और उसके राज्य पर कब्ज़ा करना था.
  11. उन्होंने बोद्ध भिक्षुओ को अज्कालकीय (महाराष्ट्र) तथा कर्जक (महाराष्ट्र) जैसे क्षेत्र प्रदान किए.
  12. गौतमी पुत्र शातकर्णी को नासिक प्रशस्ति में “वेदों का आश्रय” (आगमाननिलय) तथा “आद्वितीय ब्राहमण” (एक ब्राहमण) के नाम से पुकारा गया है. उन्हें “द्विजी” तथा “द्विजेतर” जातियों के कुलों का वर्धन करने वाला (द्विजावरकुटुंब विवधन) कहा गया है.
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